Indira Ekadashi 2025: पितरों को मुक्ति दिलाने वाला ये महाव्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और व्रत विधि!

Indira Ekadashi 2025: जानें पितृपक्ष की इंदिरा एकादशी व्रत की सही तिथि, पारण का समय, पूजन विधि और वह सब जो आपको मोक्ष दिलाने में सहायक होगा। New Delhi में शुभ मुहूर्त।

Sep 16, 2025 - 18:26
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Indira Ekadashi 2025: पितरों को मुक्ति दिलाने वाला ये महाव्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और व्रत विधि!
इंदिरा एकादशी व्रत 2025 भगवान विष्णु की पूजा और पितरों के लिए उपवास का दिन।

    By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 16 Sep 2025

    Indira Ekadashi 2025 इस साल पितृपक्ष में पड़ रही है, जो पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। भगवान विष्णु को समर्पित यह पवित्र एकादशी व्रत, श्रद्धालुओं को न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है बल्कि उनके पूर्वजों को भी यमलोक के कष्टों से निजात दिलाकर स्वर्गलोक का मार्ग प्रशस्त करता है। दिल्ली समेत देशभर के भक्तों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है जब वे अपने पितरों को तर्पण और विशेष पूजा-अर्चना के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकते हैं। यह व्रत आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति और जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है, इसलिए इस दिन के नियमों और विधानों को जानना अत्यंत आवश्यक है। इस लेख में हम आपको इंदिरा एकादशी 2025 के महत्व, तिथि, पारण समय और संपूर्ण व्रत विधि की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे, ताकि आप इस पवित्र अवसर का पूर्ण लाभ उठा सकें।

    इंदिरा एकादशी 2025: व्रत की तिथि और शुभ पारण मुहूर्त

    दिल्ली में इंदिरा एकादशी 2025 का व्रत बुधवार, 17 सितंबर 2025 को रखा जाएगा। यह तिथि विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पितृपक्ष के दौरान आती है, जब पूर्वजों का स्मरण और उनके लिए धार्मिक कार्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। एकादशी तिथि 17 सितंबर 2025 को सुबह 12:21 बजे शुरू होगी और उसी दिन रात 11:39 बजे समाप्त होगी। हालांकि, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एकादशी व्रत हमेशा सूर्योदय के साथ शुरू होता है और अगले दिन सूर्योदय के बाद समाप्त होता है। यह लगभग 24 घंटे का उपवास होता है, जो स्थानीय सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक चलता है। व्रत के अगले दिन, यानी 18 सितंबर 2025 को, पारण (व्रत खोलने) का समय सुबह 06:07 बजे से 08:34 बजे तक निर्धारित किया गया है। पारण हमेशा द्वादशी तिथि के भीतर करना आवश्यक है, अन्यथा व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।

    यह ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पारण हरि वासर (Hari Vasara) के दौरान नहीं किया जाना चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है और इस समय व्रत तोड़ना वर्जित माना जाता है। व्रत खोलने का सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। यदि किन्हीं कारणों से प्रातःकाल में पारण संभव न हो, तो मध्याह्न के बाद किया जा सकता है, लेकिन मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। Drik Panchang द्वारा प्रदान की गई सभी समय-सारणी नई दिल्ली, भारत के स्थानीय समय के अनुसार है, जिसमें DST समायोजन (यदि लागू हो) भी शामिल है।

    • इंदिरा एकादशी व्रत 2025 तिथि: बुधवार, 17 सितंबर 2025
    • एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 सितंबर 2025 को 12:21 AM
    • एकादशी तिथि समाप्त: 17 सितंबर 2025 को 11:39 PM
    • पारण का समय: 18 सितंबर 2025 को सुबह 06:07 AM से 08:34 AM
    • पारण के दिन द्वादशी समाप्त होने का क्षण: 18 सितंबर 2025 को 11:24 PM

    इंदिरा एकादशी व्रत कथा: पितरों की मुक्ति का रहस्य

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व राजा इंद्रसेन की हृदयस्पर्शी कहानी से जुड़ा है। प्राचीन काल में, महिष्मती नगरी में एक धर्मात्मा राजा इंद्रसेन राज करते थे। एक बार नारद मुनि उनके दरबार में पधारे और उन्हें बताया कि उनके पिता यमलोक में कष्ट भोग रहे हैं क्योंकि उन्होंने किसी पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग किया था। नारद जी ने राजा इंद्रसेन को अपने पिता की मुक्ति के लिए अश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे इंदिरा एकादशी कहा जाता है, का व्रत रखने का सुझाव दिया। राजा इंद्रसेन ने नारद जी के मार्गदर्शन में, इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से धारण किया। इस पवित्र व्रत के प्रभाव से, राजा के पिता को यमलोक के कष्टों से मुक्ति मिली और वे स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।

    यह प्रेरक कथा हमें सिखाती है कि श्रद्धापूर्वक किया गया इंदिरा एकादशी 2025 का व्रत न केवल स्वयं को पापों से मुक्त करता है, बल्कि अपने पूर्वजों को भी आध्यात्मिक शांति और मोक्ष प्रदान करता है। यह व्रत भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करने और पितृ ऋण से मुक्ति पाने का एक सशक्त माध्यम है। इसलिए, पितृपक्ष में पड़ने वाली यह एकादशी और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस दौरान पितरों के लिए किए गए कर्म अत्यंत फलदायी होते हैं।

    इंदिरा एकादशी व्रत के प्रकार और पालन के नियम

    धार्मिक ग्रंथों में एकादशी व्रत के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें भक्त अपनी इच्छाशक्ति और शारीरिक क्षमता के अनुसार चुन सकते हैं। इन व्रतों के माध्यम से भगवान विष्णु की आराधना की जाती है:

    • जलाहर (Jalahar): इस प्रकार के व्रत में भक्त पूरे दिन केवल जल का सेवन करते हैं। यह सबसे कठोर व्रत माना जाता है और इसे अक्सर निर्जला एकादशी पर देखा जाता है, हालांकि इसे किसी भी एकादशी पर किया जा सकता है।
    • क्षीरभोजी (Ksheerbhoji): इस व्रत में भक्त दूध और दूध से बने उत्पादों का सेवन करते हैं। 'क्षीर' का शाब्दिक अर्थ दूध और पौधों का दूधिया रस है, लेकिन एकादशी के संदर्भ में यह सभी दुग्ध उत्पादों को संदर्भित करता है।
    • फलाहारी (Phalahari): इसमें केवल फलों का सेवन किया जाता है। इस दौरान आम, अंगूर, केला, बादाम और पिस्ता जैसे उच्च गुणवत्ता वाले फलों का सेवन करना चाहिए और पत्तेदार सब्जियों से परहेज करना चाहिए।
    • नक्तभोजी (Naktabhoji): इस व्रत में भक्त दिन में एक बार, सूर्यास्त से पहले भोजन करते हैं। इस भोजन में किसी भी प्रकार के अनाज और दालें जैसे बीन्स, गेहूं, चावल और दालें वर्जित होती हैं, क्योंकि ये एकादशी व्रत के दौरान निषिद्ध माने जाते हैं। नक्तभोजी के लिए मुख्य आहार में साबूदाना, सिंघाड़ा (पानी फल), शकरकंदी, आलू और मूंगफली शामिल हैं। कुछ भक्त कुट्टू का आटा (Buckwheat Flour) और समाक (Millet Rice) का भी सेवन करते हैं, हालांकि इनकी वैधता पर बहस होती है और इन्हें अर्ध-अनाज या छद्म-अनाज माना जाता है, इसलिए व्रत के दौरान इनसे बचना बेहतर है।

    व्रत शुरू करने से पहले की रात को, भक्त सभी प्रकार के अनाज से बने रात के खाने से परहेज करते हैं, ताकि सूर्योदय के साथ व्रत शुरू करते समय पेट में कोई अवशिष्ट भोजन या अनाज न रहे। कुछ भक्त भगवान विष्णु के प्रति अपनी गहरी भक्ति के अनुसार पिछले दिन सूर्यास्त के साथ ही एकादशी का उपवास शुरू कर देते हैं। यदि कभी एकादशी दो लगातार दिनों पर पड़ती है, तो परिवार वाले गृहस्थों को आमतौर पर पहली तिथि पर ही व्रत रखना चाहिए। संन्यासी, विधवाएं और मोक्ष की कामना रखने वाले भक्त वैकल्पिक (दूसरी) एकादशी पर व्रत रख सकते हैं। भगवान विष्णु के प्रति अगाध प्रेम और स्नेह चाहने वाले भक्त दोनों दिनों का उपवास भी रख सकते हैं।

    व्रत भंग होने पर क्या करें: प्रायश्चित के उपाय

    हिंदू धार्मिक ग्रंथों में, एकादशी व्रत को सबसे पवित्र और फलदायी उपवासों में से एक बताया गया है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यदि किसी कारणवश, चाहे अनजाने में या किसी आपात स्थिति के कारण, व्रत भंग हो जाता है, तो भक्त को निराश नहीं होना चाहिए। ऐसे में, भगवान विष्णु की पूजा करते हुए उनसे विनम्रतापूर्वक क्षमा याचना करनी चाहिए। अपनी गलती का प्रायश्चित करें और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का दृढ़ संकल्प लें। शास्त्रों में प्रायश्चित के लिए कई उपाय बताए गए हैं:

    • सबसे पहले, वस्त्रों सहित फिर से स्नान करें, जिससे शरीर और मन शुद्ध हो।
    • दूध, दही, शहद, घी और चीनी से बने पंचामृत से भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
    • भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूजा करें, जिसमें सोलह प्रकार की सामग्रियों से भगवान का पूजन किया जाता है।
    • क्षमा मांगते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करें: "मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे॥ ॐ श्री विष्णवे नमः। क्षमा याचनाम् समर्पयामि॥" यह मंत्र भगवान से पूजा में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा याचना का प्रतीक है।
    • गाय, ब्राह्मण और कन्याओं को भोजन कराएं, क्योंकि इन्हें पूजनीय माना जाता है।
    • व्रत तोड़ने के बाद, अपनी क्षमता के अनुसार तुलसी माला से भगवान विष्णु के द्वादशाक्षर मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का कम से कम 11 माला जाप करें। इसके बाद 1 माला से होम (यज्ञ) भी कर सकते हैं, जिसमें 108 बार आहुति दी जाती है।
    • भगवान विष्णु के भजन और स्तोत्र भक्तिपूर्वक गाएं, जिससे मन को शांति मिले।
    • भगवान विष्णु के मंदिर में पुजारी को पीले वस्त्र, फल, मिठाइयां, धार्मिक ग्रंथ, चने की दाल, हल्दी और केसर आदि दान करें।
    • यदि गलती से एकादशी का व्रत छूट जाए, तो आप प्रायश्चित के रूप में अगली निर्जला एकादशी का संकल्प ले सकते हैं, जिसे बिना जल और भोजन के रखने का निर्देश दिया गया है और यह अत्यंत कठिन व्रत होता है।

    याद रखें, व्रत और पूजा पूरी तरह से श्रद्धा और भक्ति का विषय है। यदि अज्ञानवश कोई गलती हो जाए, तो अपने इष्टदेव में पूर्ण विश्वास रखें और उनसे क्षमा मांगें। डरने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आलस्य और लापरवाही में व्रत के दौरान मनमानी न करें। भगवान श्री हरि विष्णु सभी प्राणियों की भावनाओं से पूरी तरह अवगत हैं और उसी के अनुसार फल प्रदान करते हैं।

    भगवान विष्णु और एकादशी का गहरा संबंध

    एकादशी तिथि सीधे तौर पर भगवान विष्णु को समर्पित है, जो संपूर्ण ब्रह्मांड के संरक्षक और पालनहार माने जाते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह दृश्यमान संसार क्षीरसागर में शयन कर रहे भगवान विष्णु का ही स्वप्न है। एकादशी व्रत के माध्यम से भक्त भगवान विष्णु के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और जीवन में समृद्धि प्राप्त होती है। इस पवित्र दिन पर भगवान विष्णु के विभिन्न नामों और मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है।

    • भगवान विष्णु के 108 नाम: ये नाम भगवान के विभिन्न गुणों और रूपों का वर्णन करते हैं, जैसे 'ॐ विष्णवे नमः', 'ॐ लक्ष्मीपतये नमः', 'ॐ कृष्णाय नमः' आदि।
    • भगवान विष्णु के 1000 नाम: 'विष्णु सहस्रनाम' के रूप में प्रसिद्ध ये नाम भगवान की अनंत महिमा को दर्शाते हैं, जैसे 'ॐ विश्वस्मै नमः', 'ॐ विष्णवे नमः', 'ॐ वषट्काराय नमः' आदि।
    • महत्वपूर्ण मंत्र: द्वादशाक्षर मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक है, जिसका जाप एकादशी पर विशेष रूप से किया जाता है।
    • स्तुति: श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ एकादशी सहित विभिन्न विष्णु पूजा के अवसरों पर किया जाता है।

    एकादशी तिथि पर उपवास रखना केवल शारीरिक संयम ही नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है। भक्त इस दिन विशेष पूजा-अर्चना, मंत्रोच्चार और दान-पुण्य के कार्यों से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करते हैं, जिससे उनके जीवन के कष्ट दूर होते हैं, पापों का नाश होता है और अंततः उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इंदिरा एकादशी 2025 के इस पावन अवसर पर, भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होकर अपने जीवन को सफल बनाएं।


    Conclusion:

    संक्षेप में, इंदिरा एकादशी 2025 एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है जो पितृपक्ष में आता है और पितरों की मुक्ति तथा व्यक्तिगत कल्याण के लिए अद्वितीय महत्व रखता है। बुधवार, 17 सितंबर 2025 को मनाए जाने वाले इस व्रत को सही विधि, शुभ मुहूर्त और नियमों के साथ पालन करना आवश्यक है ताकि इसका पूर्ण फल प्राप्त हो सके। यह व्रत न केवल हमें अपने पूर्वजों से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है बल्कि भगवान विष्णु की कृपा से जीवन को पवित्र और समृद्ध भी बनाता है। इस व्रत का पालन करने से मन में शांति और सकारात्मकता आती है। भविष्य में भी, यह पवित्र व्रत हमें आध्यात्मिक मार्ग पर चलने और धर्म के प्रति अपनी आस्था को सुदृढ़ करने के लिए प्रेरित करता रहेगा, जिससे समाज में भक्ति और नैतिक मूल्यों का प्रसार होगा और आने वाली पीढ़ियां भी इस महान परंपरा से लाभान्वित हो सकेंगी।


    FAQs (5 Q&A):

    Q1: इंदिरा एकादशी 2025 कब है? A1: इंदिरा एकादशी 2025 का व्रत बुधवार, 17 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा। यह व्रत पितृपक्ष में आता है, जो पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

    Q2: इंदिरा एकादशी व्रत का पारण कब और कैसे करें? A2: इंदिरा एकादशी 2025 व्रत का पारण 18 सितंबर 2025 को सुबह 06:07 AM से 08:34 AM के बीच किया जाना चाहिए। पारण हमेशा द्वादशी तिथि के भीतर और हरि वासर समाप्त होने के बाद ही करें।

    Q3: इंदिरा एकादशी व्रत के दौरान क्या खा सकते हैं? A3: इंदिरा एकादशी व्रत में आप जलाहर (केवल जल), क्षीरभोजी (दूध उत्पाद), या फलाहारी (फल) व्रत कर सकते हैं। नक्तभोजी में साबूदाना, सिंघाड़ा, शकरकंदी, आलू और मूंगफली का सेवन कर सकते हैं, लेकिन अनाज वर्जित है।

    Q4: इंदिरा एकादशी व्रत क्यों रखा जाता है? A4: इंदिरा एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए रखा जाता है। राजा इंद्रसेन की कथा के अनुसार, इस व्रत से उनके पिता को यमलोक से मुक्ति मिली और स्वर्ग प्राप्त हुआ था।

    Q5: यदि इंदिरा एकादशी का व्रत टूट जाए तो क्या करें? A5: यदि इंदिरा एकादशी का व्रत टूट जाए, तो भगवान विष्णु से क्षमा याचना करें। स्नान, अभिषेक, पूजा, मंत्र जाप, गायों/ब्राह्मणों को भोजन, और दान-पुण्य करके प्रायश्चित किया जा सकता है। भविष्य में गलती न दोहराने का संकल्प लें।

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