स्टिंग एनर्जी ड्रिंक का जलवा: रेड बुल को कैसे पछाड़ा?

स्टिंग एनर्जी ड्रिंक कैसे बनी भारत की नंबर 1 पसंद? ₹20 में इसने रेड बुल जैसे प्रीमियम ब्रांड को कैसे दी कड़ी टक्कर? जानिए कीमत, मार्केटिंग और सेहत से जुड़े खुलासे!

Aug 21, 2025 - 13:11
 0  4
स्टिंग एनर्जी ड्रिंक का जलवा: रेड बुल को कैसे पछाड़ा?
स्टिंग एनर्जी ड्रिंक

स्टिंग एनर्जी ड्रिंक का जलवा: रेड बुल को कैसे पछाड़ा?

भारत के ऊर्जा पेय बाजार में एक बड़ा उलटफेर हुआ है! जहां एक दशक पहले तक रेड बुल का एकाधिकार था, वहीं आज मात्र ₹20 की स्टिंग एनर्जी ड्रिंक ने बाजार का नक्शा पूरी तरह बदल दिया है। कभी "छपरियों की ड्रिंक" या "गरीबों का रेड बुल" कही जाने वाली स्टिंग ने न केवल रेड बुल जैसे प्रीमियम ब्रांड को पछाड़ दिया है, बल्कि खुद को भारतीय बाजार का किंग भी साबित किया है। आखिर इतनी बदनाम होने के बाद भी स्टिंग इतना बड़ा नाम कैसे बनी और क्या वाकई यह सेहत के लिए नुकसानदायक है, आइए जानते हैं इस विस्तृत रिपोर्ट में।

भारत में एनर्जी ड्रिंक का सफर: रेड बुल का उदय

भारत में एनर्जी ड्रिंक का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। सबसे पहले 2001 में कोका-कोला ने 'शॉक' और 2008 में पेप्सिको ने 'शोबे' के साथ किस्मत आजमाई, लेकिन दोनों ही बुरी तरह विफल रहे। फिर आया साल 2009, जब ऑस्ट्रेलियाई ब्रांड रेड बुल ने इंडियन मार्केट में धमाकेदार एंट्री की। 250 मिलीलीटर का चमकदार कैन और करीब ₹100 की कीमत के साथ, रेड बुल ने सीधे कॉलेज जाने वाले युवाओं और जिम प्रेमियों को निशाना बनाया। इसने खुद को एक 'कूल' ड्रिंक के रूप में प्रस्तुत किया और कुछ ही सालों में इसका मार्केट शेयर 60% से भी ज्यादा हो गया। 2015 तक, रेड बुल भारतीय एनर्जी ड्रिंक मार्केट का undisputed किंग बन चुका था, एक ऐसी ड्रिंक जिसे पीकर लोग कूल और क्लासी दिखना चाहते थे।

पेप्सिको की वापसी और स्टिंग का धमाकेदार लॉन्च

एक तरफ जहां रेड बुल का साम्राज्य फैल रहा था, वहीं दूसरी तरफ पेप्सिको के लिए हालात बुरे होते जा रहे थे। 2008 में 'शोबे' की विफलता ने पेप्सी के आत्मविश्वास को तगड़ा झटका दिया था। 2013 से 2016 के बीच उसके कई कोर ब्रांड्स का मार्केट शेयर गिरने लगा था, जिससे लगातार नुकसान हो रहा था। ऐसे में पेप्सिको को एक ऐसे दांव की तलाश थी जो न सिर्फ पुराने नुकसान की भरपाई कर सके बल्कि बाजार में उसकी एक नई पहचान भी बना दे।

इसी बीच, भारतीय नियामक एजेंसी एफएसएसएआई (FSSAI) ने दिसंबर 2016 में कैफीन की अधिकतम सीमा 300 मिलीग्राम प्रति लीटर तय कर दी और जुलाई 2017 से हर बोतल पर 500 मिलीलीटर से अधिक खपत हानिकारक होने की चेतावनी देना अनिवार्य कर दिया। इन सख्त नियमों ने बाजार में एक खाली जगह बना दी, जिसका फायदा पेप्सिको ने उठाया। 2017 में, पेप्सिको ने 'स्टिंग' नाम की एनर्जी ड्रिंक इंडियन मार्केट में लॉन्च कर दी। दिलचस्प बात यह थी कि स्टिंग असल में रॉकस्टार नाम की एक अमेरिकी कंपनी का ब्रांड था, जिसे फिलीपींस और वियतनाम जैसे "वैल्यू-फॉर-मनी" प्रोडक्ट चाहने वाले बाजारों में सफलता मिली थी। पेप्सिको ने भारतीय बाजार को भी वैसा ही समझकर स्टिंग का अधिग्रहण किया और इसे भारत लेकर आया।

₹20 की बोतल ने कैसे बदली बाजी?

शुरुआत में स्टिंग 250 मिलीलीटर के कैन में ₹50 में आई, जो रेड बुल की कीमत का ठीक आधा था। इसे आम सॉफ्ट ड्रिंक की तरह पोजीशन किया गया, न कि हाई स्टेटस सिंबल की तरह। हालांकि, शुरुआती कुछ साल स्टिंग के लिए आसान नहीं थे, क्योंकि एनर्जी ड्रिंक उस समय भारत में एक 'निच प्रोडक्ट' माना जाता था। पेप्सिको ने कोई बड़ा सेलिब्रिटी कैंपेन या हाई बजट टीवी विज्ञापन भी नहीं चलाया था। लेकिन असली गेम तब बदला जब 2020 में पेप्सिको ने स्टिंग को 250 मिलीलीटर की पेट बॉटल में मात्र ₹20 की कीमत पर दोबारा लॉन्च किया। यह फैसला गेम-चेंजर साबित हुआ! अब स्टिंग एक प्रीमियम प्रोडक्ट नहीं रहा बल्कि आम आदमी की पहुंच में आ गया, गली के पान वाले से लेकर गांव के जनरल स्टोर तक हर कोई इसे स्टॉक करने लगा। कुछ ही महीनों में, जो ड्रिंक पहले केवल कूल कैफे और नाइट क्लब में दिखती थी, वह अब छात्र, मजदूर और ऑटो ड्राइवर्स की पहली पसंद बन गई।

पेप्सिको की मजबूत सप्लाई चेन और आक्रामक प्राइसिंग रणनीति का ऐसा जादू चला कि सेल्स आसमान छूने लगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2021 में 2.3 करोड़, 2022 में 6.5 करोड़ और 2023 में रिकॉर्ड 11 करोड़ स्टिंग बॉटल्स बिकीं। सिर्फ 4 सालों में, स्टिंग ने भारतीय एनर्जी ड्रिंक बाजार का पूरा नक्शा बदल दिया: 2018 में जहां रेड बुल के पास 75% मार्केट शेयर था, वहीं 2023 तक स्टिंग अकेला 90% शेयर का किंग बन चुका था, जबकि रेड बुल का शेयर गिरकर मात्र 7% पर आ गया।

स्टिंग की मार्केटिंग और वितरण रणनीति

स्टिंग की इस कामयाबी के पीछे कई कारण हैं। इसकी अद्वितीय मूल्य निर्धारण (Pricing) रणनीति एक बड़ा कारण थी। दूसरा महत्वपूर्ण अंतर पैकेजिंग और सप्लाई चेन का था। रेड बुल केवल एल्यूमीनियम कैन में मिलता था जो बाहर से आयात होता था, जिससे लागत बढ़ जाती थी। इसके विपरीत, स्टिंग को भारत में ही निर्मित किया गया और पेप्सिको के बॉटलिंग पार्टनर वरुण बेवरेजेस के संगठित नेटवर्क ने इसे देश के हर कोने तक पहुंचाया। पेट बॉटल का इस्तेमाल एक मास्टर स्ट्रोक था क्योंकि यह सस्ता होने के साथ-साथ ले जाने में भी आसान था। 2022 तक, स्टिंग 2 मिलियन से अधिक रिटेल स्टोर्स पर मिलने लगा, जिसमें छोटे गांव और कस्बों की किराना और पान की दुकानें भी शामिल थीं।

मार्केटिंग के मामले में भी स्टिंग ने एक अलग रणनीति अपनाई। जहां रेड बुल फॉर्मूला वन रेसिंग और महंगे ग्लोबल कैंपेन से खुद को कूल दिखाने में लगा रहा, वहीं स्टिंग ने शुरुआत में किसी बड़े सेलिब्रिटी ब्रांड एंबेसडर का सहारा नहीं लिया। इसकी ब्रांडिंग एकदम शुद्ध देसी अंदाज में की गई, जिससे आम लोग जुड़ सकें: लाल चमकदार बोतल, कैंडी जैसा मीठा स्वाद और एक सरल टैगलाइन – "एनर्जी बोले तो स्टिंग"। 2019 से 2021 के बीच, स्टिंग बिना किसी बड़े प्रचार के ही वायरल होता चला गया। बाद में, पेप्सिको ने अक्षय कुमार को ब्रांड एंबेसडर बनाया और 'डार्ट कैंपेन' जैसे नए अभियान शुरू किए, जिससे इसकी पहुंच और बढ़ गई।

स्टिंग के स्वास्थ्य संबंधी सवाल और सच्चाई

स्टिंग की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही इसके इर्द-गिर्द कुछ धारणाएं भी बनने लगीं, जैसे "गरीबों का रेड बुल" या "छपरियों की ड्रिंक"। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इसके मुख्य ग्राहक दिहाड़ी मजदूर और रिक्शा चालक जैसे लोग बने, जिन्हें सस्ते में तत्काल ऊर्जा मिलती है। हालांकि, सच्चाई यह है कि भारत की अधिकांश आबादी इन्हीं लोगों से बनी है जो बिना किसी ब्रांड परसेप्शन के, सिर्फ अपनी थकान मिटाने के लिए इसे पीते हैं।

स्वास्थ्य को लेकर भी स्टिंग पर कई सवाल उठते हैं, जैसे इसे "लाल रंग वाला जहर" या "नशा" कहना। लेकिन हकीकत यह है कि इसका लाल रंग 'एलरा रेड एसी' जैसे फूड कलर से आता है, जो भारत में एफएसएसएआई द्वारा अप्रूव्ड है। यह तभी हानिकारक होगा जब आप लंबे समय तक हर रोज दो-तीन बोतलें पीते हों। दिल की कमजोरी या हार्ट अटैक की बात भी आम है, लेकिन यह कैफीन की वजह से होता है जो हर एनर्जी ड्रिंक का एक सामान्य घटक है। स्टिंग की 250 मिलीलीटर की बोतल में लगभग 72 मिलीग्राम कैफीन होता है, जो रेड बुल (80 मिलीग्राम/250 मिलीलीटर) के बराबर ही है। कैफीन से हार्ट रेट केवल उन लोगों का बढ़ता है जो पहले से हार्ट पेशेंट हैं या जिन्हें एंजाइटी की दिक्कत है। चीनी की बात करें तो स्टिंग में 100 मिलीलीटर में 6.8 ग्राम चीनी होती है, जबकि रेड बुल में यह 11 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर तक पहुंच जाती है, यानी स्टिंग में रेड बुल से कम चीनी है। रही बात लत लगने की, तो यह चीनी और कैफीन के मिश्रण के कारण होता है, जिससे लोगों को शॉर्ट-टर्म एनर्जी बूस्ट और "गुड फीलिंग" मिलती है। अत्यधिक सेवन से नींद उड़ जाना, हार्ट रेट बढ़ना या ब्लड प्रेशर का बढ़ना जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, और यह बच्चों व गर्भवती महिलाओं के लिए मना है।

आगे क्या? भारत के एनर्जी ड्रिंक बाजार का भविष्य

2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का एनर्जी ड्रिंक बाजार ₹7,800 करोड़ से अधिक का हो चुका है और अनुमान है कि 2030 तक यह ₹16,000 करोड़ को पार कर जाएगा। चूंकि स्टिंग ही बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी है, इसलिए आने वाले सालों में यह डेढ़ से दो गुना तक ग्रो कर सकता है। रेड बुल जो कभी भारत में एनर्जी ड्रिंक का पर्याय माना जाता था, अब बिक्री और मार्केट शेयर की दौड़ में बहुत पीछे छूट गया है। पेप्सिको की इस सफलता को देखते हुए कोका-कोला ने भी 2022 में 'थम्स अप चार्ज' नाम से ₹20 की कीमत पर अपना एनर्जी ड्रिंक लॉन्च किया था, लेकिन वह अभी भी स्टिंग से काफी पीछे है। पेप्सिको भी नए फ्लेवर (रेड के अलावा ब्लू करंट और गोल्ड नाइट फ्यूल) लॉन्च करके अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। स्टिंग ने यह दिखा दिया है कि सही रणनीति हो, तो भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाजार में पुराने से पुराने प्रतिद्वंद्वियों को भी हराया जा सकता है।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. स्टिंग एनर्जी ड्रिंक इतनी सस्ती क्यों है? स्टिंग एनर्जी ड्रिंक भारत में ही बनाई जाती है और पेप्सिको के मजबूत वितरण नेटवर्क का उपयोग करती है। इसके अलावा, पेट बॉटल (प्लास्टिक बोतल) का उपयोग एल्यूमीनियम कैन की तुलना में सस्ता पड़ता है। इन कारणों से इसकी कीमत कम रखी गई है, जिससे यह आम लोगों तक पहुंच सके।

  2. क्या स्टिंग एनर्जी ड्रिंक सेहत के लिए हानिकारक है? अन्य एनर्जी ड्रिंक्स की तरह, स्टिंग में कैफीन और चीनी होती है। एफएसएसएआई द्वारा अनुमोदित खाद्य रंगों का उपयोग किया जाता है। अत्यधिक सेवन से नींद में कमी, हृदय गति बढ़ना या रक्तचाप में वृद्धि जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

  3. स्टिंग में कैफीन और चीनी की मात्रा कितनी होती है? स्टिंग की एक 250 मिलीलीटर की बोतल में लगभग 72 मिलीग्राम कैफीन होता है, जो एक सामान्य कप कॉफी से डेढ़ गुना ज्यादा है। चीनी की मात्रा 6.8 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होती है, जो रेड बुल (11 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर) से कम है।

  4. स्टिंग ने रेड बुल को कैसे पछाड़ा? स्टिंग की सफलता का मुख्य कारण इसकी आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीति (मात्र ₹20 की बोतल), मजबूत वितरण नेटवर्क जो छोटे शहरों और गांवों तक पहुंचा, और आम आदमी से जुड़ने वाली मार्केटिंग थी। रेड बुल की प्रीमियम इमेज की तुलना में स्टिंग ने खुद को एक मास-मार्केट प्रोडक्ट के रूप में स्थापित किया।

  5. भारत में स्टिंग का मार्केट शेयर कितना है? 2023 तक, स्टिंग एनर्जी ड्रिंक ने भारतीय एनर्जी ड्रिंक बाजार में 90% का विशाल मार्केट शेयर हासिल कर लिया है। यह 2018 में रेड बुल के 75% मार्केट शेयर की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है, जबकि रेड बुल का शेयर गिरकर 7% पर आ गया है।

Neeraj Ahlawat Neeraj Ahlawat is a seasoned News Editor from Panipat, Haryana, with over 10 years of experience in journalism. He is known for his deep understanding of both national and regional issues and is committed to delivering accurate and unbiased news.