NAVRATRI 2025: शारदीय नवरात्रि पूजन की संपूर्ण और सही विधि, ऐसे करें कलश स्थापना और अखंड ज्योत प्रज्वलित
NAVRATRI पूजन विधि 2025: सीखिए कलश स्थापना, नवग्रह पूजन और अखंड ज्योत प्रज्वलित करने का चरण-दर-चरण सही तरीका, ताकि मां भगवती की कृपा सदैव बनी रहे।

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: 21 Sep 2025
राधे-राधे एवरीवन! जय माता रानी! दोस्तों, आप सभी को नवरात्रि पूजन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। यह वह पावन अवसर है जब माता भगवती की कृपा भक्तों पर सीधे बरसती है। NAVRATRI के नौ दिनों के व्रत और पूजन का महत्व हमारे धर्म ग्रंथों में सर्वोपरि माना गया है, और इसीलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि हम माता रानी की चौकी स्थापना और पूजा का कार्य संपूर्ण विधि-विधान के साथ करें। अगर आप भी इस वर्ष पहली बार या फिर पिछली बार से बेहतर और निर्विघ्न तरीके से नौ दिवसीय व्रत संपन्न करना चाहते हैं, तो एक अनुभवी पत्रकार की यह विशेष रिपोर्ट आपके लिए अत्यंत उपयोगी है। इसमें हम शारदीय NAVRATRI में कलश स्थापना, नवग्रह पूजन और अखंड ज्योत प्रज्वलित करने की संपूर्ण चरणबद्ध प्रक्रिया को जानेंगे, ताकि आपके परिवार पर माता की कृपा सदैव बनी रहे और पूजा में कोई त्रुटि न हो।
चौकी स्थापना: माता रानी का आसन और शुभ दिशा
नवरात्रि पूजन के लिए सबसे पहला और महत्वपूर्ण चरण है शुद्धिकरण और चौकी की स्थापना, जिसे पहले दिन सुबह सवेरे स्नान करके, शुद्ध वस्त्र धारण करके, और पूजा स्थान को स्वच्छ करके शुरू किया जाता है। पूजा करने वाले भक्त का मुख पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) दिशा की ओर होना चाहिए, इसलिए चौकी को इसी प्रकार से स्थापित करें। चौकी छोटी या बड़ी, आप अपनी सुविधानुसार लगा सकते हैं और चाहें तो फूलों या अन्य सामग्री से सुंदर सजावट भी कर सकते हैं। चौकी के ऊपर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाना चाहिए, क्योंकि ये दोनों रंग माता रानी को अत्यंत प्रिय हैं। इसके बाद, माता रानी का चित्र या धातु की मूर्ति विराजमान करें। यदि मूर्ति धातु की है, तो उसे पंचामृत आदि से स्नान कराकर सुंदर श्रृंगार और वस्त्र पहनाकर स्थापित करना चाहिए, और यदि फोटो है तो उसे गंगाजल से साफ करके अक्षत (टूटे हुए नहीं होने चाहिए) और फूलों का आसन देते हुए विराजमान करें। माता रानी के साथ चावल का आसन देते हुए गणेश भगवान को भी स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि वह प्रथम पूज्य हैं।
NAVRATRI कलश स्थापना का चरणबद्ध तरीका और नियम
नवरात्रि पूजन में कलश की स्थापना करना अनिवार्य होता है, और यह माता रानी के दाहिने तरफ की जाती है। कलश स्थापना के लिए सर्वप्रथम चावलों की ढेरी लगाई जाती है, अथवा आप अष्टदल कमल भी बना सकते हैं। कलश आप किसी भी धातु, जैसे पीतल या तांबे, का प्रयोग कर सकते हैं, या फिर मिट्टी के कलश की स्थापना भी कर सकते हैं। कलश को स्थापित करने से पहले उसके कंठ में कलावा बांधा जाता है और उस पर रोली से स्वास्तिक बनाया जाता है। इसके बाद कलश को अष्टदल कमल या चावल की ढेरी के ऊपर स्थापित करें। कलश के अंदर गंगाजल, शुद्ध जल (कंठ तक भरा हुआ), लौंग, इलायची, सिक्का, सुपारी, हल्दी की गांठ, थोड़े से अक्षत, और एक फूल डाला जाता है; आप चाहें तो इसमें सर्व औषधि आदि भी डाल सकते हैं। कलश के अंदर आम की टहनी लगाई जाती है। आम के पत्तों को भी टीका करना चाहिए। टहनी ऐसी होनी चाहिए जिसके पत्ते पूरे 9 दिन तक हरे-भरे बने रहें। अब एक प्लेट में चावल भरकर उसे आम के पत्तों के ऊपर रख दें। अंत में, एक पानी वाला (जटा वाला) नारियल लें, उस पर चुनरी और कलावा लपेटकर कलश के ऊपर रख दें। नारियल का मुख पूजा करने वाले की ओर या ऊपर की ओर होना चाहिए।
अखंड ज्योत प्रज्वलित करना और संकल्प की महत्ता
यदि आप अखंड ज्योत (जो नौ दिन तक लगातार जलती रहे) जलाना चाहते हैं, तो माता रानी के सामने उसकी स्थापना की जाती है। इसके लिए एक बड़ा सा दिया (दीपक) लें और सवा हाथ की बाती (वस्त्र या कलावे से बनी) का उपयोग करें। जिस प्लेट में यह दिया रखेंगे, उस पर रोली से स्वास्तिक बनाकर टीका कर लें। अखंड ज्योत को देसी घी या तिल के तेल से प्रज्वलित किया जा सकता है। इसके साथ ही, साइड में ही मिट्टी के कुंडे के अंदर ज्वारे (जौ) उगाकर उनकी भी स्थापना कर दें, क्योंकि ज्वारे माता रानी का ही स्वरूप माने जाते हैं। इसके बाद, हम नवग्रह की स्थापना करते हैं—इसके लिए टूटे हुए न हों ऐसे चावलों की नौ ढेरियां लगाई जाती हैं और उनके ऊपर नौ सुपारी रखी जाती है। यदि आपके पास धातु का नवग्रह यंत्र है, तो उसे भी स्थापित कर सकते हैं, या शोडस मात्रिकाओं की भी स्थापना की जा सकती है। अब, गणेश भगवान का ध्यान करते हुए, माता रानी का जयकारा बोलते हुए अखंड ज्योत प्रज्वलित कर दें। अखंड ज्योत प्रज्वलित करने के बाद, अक्षत और पुष्प लेते हुए व्रत और पूजन का संकल्प लिया जाता है। मां से प्रार्थना करें कि आपके नौ दिन के व्रत निर्विघ्न संपन्न हों और उनकी कृपा सदैव बनी रहे। प्रार्थना के बाद अक्षत और पुष्प माता रानी के चरणों में छोड़ दें।
वस्त्र समर्पण, तिलक, और हवन-आरती की पूर्ण विधि
संकल्प लेने के बाद सभी देवताओं को जल का छींटा देकर स्नान का भाव कराया जाता है, और अपने ऊपर भी जल का छींटा ले सकते हैं। इसके पश्चात, वस्त्र रूपी कलावा गणेश भगवान, नवग्रहों और वरुण कलशदेव को समर्पित किया जाता है। माता रानी की तस्वीर को चुनरी जरूर ओढ़ाएं। इसके बाद, रोली से सभी को तिलक करें, जिसमें माता रानी की पिंडियां, उनका वाहन (शेर) और सभी स्थापित देवी-देवता शामिल हैं। सभी को अक्षत समर्पित किए जाते हैं। माता दुर्गा और गणेश जी को लाल गुड़हल का फूल अत्यंत प्रिय है, यदि यह उपलब्ध न हो, तो गुलाब या गेंदे का फूल भी चढ़ा सकते हैं। वरुण कलश देव और ज्वारों को भी टीका, अक्षत और पुष्प समर्पित करें। यदि आप श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले हैं, तो उस पुस्तक का भी पूजन (टीका और अक्षत समर्पित करके) करें। भोग में मेवा, मिठाई, या कोई भी मौसमी फल अर्पित करें, और माता रानी को श्रृंगार की सामग्री (जो नवरात्रि में कभी भी चढ़ाई जा सकती है) जरूर चढ़ाएं। मीठा पान (या लौंग, इलायची, सुपारी के साथ पान) माता रानी को समर्पित करें।
हवन, आरती, और नौ दिन की पूजा का नियम
नवरात्रि में हवन एक समय (सुबह के समय) जरूर करना चाहिए, हालांकि आप चाहें तो दो समय भी कर सकते हैं। हवन के लिए गाय के गोबर का उपला या टुकड़ा गैस पर सुलगा लें, फिर हवन कुंड में कपूर और घी डालकर अग्नि प्रज्वलित करें। इस अग्नि में परिवार के सभी सदस्यों को सम्मिलित होना चाहिए और लौंग के जोड़े (दो, पांच, या सात) जरूर चढ़ाने चाहिए। घी, बताशे, और लौंग बताशे का भोग भी इस अग्नि में चढ़ाया जाता है। आहुतियां देते समय मां के मंत्रों का जाप करें, जैसे "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" या "ॐ दुं दुर्गायै नमः"। नवग्रह और गौरी गणेश का ध्यान करते हुए भी आहुतियां देनी चाहिए। हवन के अंत में, जो पान आपने चढ़ाया था, उसमें लौंग लगाकर और घी लगाकर, उसे फोल्ड करके अग्नि में समर्पित कर दें। ऐसा माना जाता है कि जो भी भोग अग्नि में समर्पित किया जाता है, वह सीधे देवताओं को प्राप्त होता है। अंत में, गणेश भगवान और फिर मां दुर्गा की आरती कपूर, पंच दीपिका या जो दिया आपने पूजा में जलाया है, उससे करें। पहले दिन स्थापना और पूजा में अधिक समय लगता है, लेकिन एक बार स्थापना हो जाने के बाद, अगले 9 दिन तक आपको सुबह और शाम, दोनों समय धूप, दीप, भोग, और आरती करनी होती है।
Conclusion: भक्ति और कृपा का आशीर्वाद
इस प्रकार, NAVRATRI के पावन पर्व पर संपूर्ण विधि-विधान के साथ कलश स्थापना और पूजन करने से माता भगवती की कृपा निश्चित रूप से सभी पर बनी रहती है। पहले दिन की विस्तृत तैयारी के बाद अगले आठ दिन नियमित पूजा करना सरल हो जाता है। यह पूजा हमें निर्विघ्न व्रत संपन्न करने, परिवार पर सुख-समृद्धि लाने, और आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करती है। भविष्य में, जैसे-जैसे लोगों में वैदिक परंपराओं के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, हम उम्मीद करते हैं कि यह संपूर्ण और शुद्ध पूजन विधि हर घर में अपनाई जाएगी, जिससे धार्मिक आस्था और भक्ति की गहराई और बढ़ेगी।
Alt Text: [शारदीय नवरात्रि संपूर्ण पूजा विधि]
FAQs (5 Q&A)
Q1: NAVRATRI में कलश स्थापना की दिशा क्या होनी चाहिए?
A1: NAVRATRI में कलश स्थापना के दौरान पूजा करने वाले व्यक्ति का मुख पूर्व, उत्तर, या उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रहना चाहिए। कलश को माता रानी के दाहिने तरफ चावलों की ढेरी या अष्टदल कमल बनाकर स्थापित किया जाता है।
Q2: NAVRATRI पूजन विधि में अखंड ज्योत कैसे जलाई जाती है?
A2: NAVRATRI में अखंड ज्योत जलाने के लिए सवा हाथ की बाती का बड़ा दीपक देसी घी या तिल के तेल से जलाया जाता है। दीपक स्थापित करने वाली प्लेट पर रोली से स्वास्तिक बनाना चाहिए।
Q3: NAVRATRI में कौन से रंग के वस्त्र माता रानी को प्रिय हैं?
A3: NAVRATRI में पूजा के दौरान लाल और पीला रंग माता रानी को बहुत प्रिय है। इसलिए चौकी पर इन रंगों का वस्त्र बिछाना चाहिए। भक्त भी शुद्ध होकर इन्हीं रंगों के वस्त्र धारण कर सकते हैं।
Q4: NAVRATRI पूजन विधि के दौरान भोग में क्या चढ़ाएं?
A4: NAVRATRI पूजन विधि में भोग में आप मेवा, मिठाई, और कोई भी ऋतु फल (मौसमी फल) चढ़ा सकते हैं। साथ ही, मीठा पान या लौंग, इलायची, सुपारी वाला पान भी समर्पित करना चाहिए।
Q5: क्या NAVRATRI में स्थापना के बाद रोज़ सुबह-शाम पूजा करनी होती है?
A5: हां, पहले दिन कलश स्थापना हो जाने के बाद, NAVRATRI के पूरे नौ दिन तक सुबह और शाम, दोनों समय धूप, दीप, भोग, और आरती आदि के साथ पूजा करनी होती है।