उत्तराखंड: 5 Offbeat डेस्टिनेशंस का बड़ा खुलासा, जानिए कैसे बिताएं भीड़-मुक्त छुट्टियां!
उत्तराखंड की भीड़-मुक्त जगहों की तलाश है? पंगोट, लोहाघाट, सोमेश्वर, ग्वालदम और रामगढ़ जैसे 5 ऑफबीट डेस्टिनेशंस में पाएं शांति और प्रकृति का आनंद। अपनी अगली यात्रा को अविस्मरणीय बनाएं!

दैनिक रियल्टी ब्यूरो | By: Neeraj Ahlawat | Date 31 Aug 2025
अगर आप शहर की भागदौड़ और भीड़भाड़ से दूर प्रकृति के बीच कुछ शांतिपूर्ण पल बिताना चाहते हैं, तो यह खबर आपके लिए ही है। अक्सर महीनों की प्लानिंग और मेहनत की कमाई खर्च कर जब लोग नैनीताल या मसूरी जैसी प्रसिद्ध पहाड़ी जगहों पर जाते हैं, तो उन्हें बेतहाशा भीड़ और ट्रैफिक का सामना करना पड़ता है। ऐसे में, अगर आप भी ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें प्रकृति से प्रेम है लेकिन भीड़ पसंद नहीं, तो उत्तराखंड में कुछ ऐसे ऑफबीट डेस्टिनेशंस मौजूद हैं जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांति के बावजूद आज भी पर्यटकों की नज़रों से छिपे हुए हैं। Dainik Realty की यह रिपोर्ट आपको ऐसे ही 5 छिपे हुए रत्नों के बारे में बताएगी, जहाँ आप भीड़-मुक्त वातावरण में सुकून भरे पल बिता सकते हैं।
1. पंगोट: बर्डवॉचर्स का स्वर्ग और नैनीताल का पड़ोसी शांत गाँव
नैनीताल से मात्र 15 किलोमीटर दूर, मुश्किल से 40 मिनट की ड्राइव पर स्थित, पंगोट उत्तराखंड का एक ऐसा 'हिडन जैम' है जहाँ भरपूर प्रकृति है और भीड़ न के बराबर। यह नैनीताल जिले का एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत गाँव है, जो हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ एक द्वीप जैसा लगता है।
- क्या करें: पंगोट को बर्डवॉचिंग के लिए स्वर्ग माना जाता है, जहाँ 350 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ और ढेरों जंगली जानवर देखे जा सकते हैं। बर्डवॉचर्स और फोटोग्राफर्स के लिए यह एक सपनों की जगह है। यहाँ आप नैना पीक तक 5 किलोमीटर लंबी ट्रेकिंग कर सकते हैं, जहाँ से बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों के शानदार नज़ारे दिखते हैं।
- स्थानीय अनुभव: यहाँ के लोग खेती और पर्यटन से जुड़े हुए हैं और एक साधारण जीवनशैली जीते हैं। कुमाऊनी व्यंजनों का असली स्वाद यहाँ चखने को मिलेगा।
- कब जाएँ और कैसे पहुँचें: मार्च से जून के बीच यहाँ गर्मियों में ठंड का आनंद ले सकते हैं, जबकि दिसंबर से फरवरी स्नोफॉल के लिए उत्तम है। मानसून में भी यहाँ का मौसम साफ़ रहता है, जो बर्डवॉचिंग के लिए परफेक्ट है। पंतनगर एयरपोर्ट (85 कि.मी.) या हल्द्वानी/काठगोदाम रेलवे स्टेशन (50 कि.मी.) से टैक्सी या बस द्वारा नैनीताल होते हुए यहाँ पहुँचा जा सकता है। दिल्ली से यह लगभग 350 कि.मी. दूर है और सड़क मार्ग से 7-8 घंटे लगते हैं। यहाँ होमस्टे, होटल, कॉटेज और कैंप साइट उपलब्ध हैं।
2. लोहाघाट: इतिहास, संस्कृति और प्रकृति का अनूठा संगम
उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित लोहाघाट, एक ऐतिहासिक और प्राकृतिक रत्न है, जो कुमाऊं क्षेत्र में पड़ता है। यह पहले पहाड़ों पर राज करने वाले कत्यूरी और चंद राजवंशों की पसंदीदा जगह थी, और अंग्रेज भी यहाँ के शांत वातावरण के दीवाने थे।
- मुख्य आकर्षण: अबोर्ट माउंट अपने विंटेज चर्च और अंग्रेजों के जमाने के कॉटेजेस के लिए जाना जाता है, जहाँ से साफ़ मौसम में हिमालय के शानदार नज़ारे दिखते हैं। लोहाघाट को इसकी समृद्ध इतिहास और प्राचीन मंदिरों के कारण आज भी कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। मायावती आश्रम (अद्वैत आश्रम) जहाँ स्वामी विवेकानंद ने समय बिताया था, और पंचेश्वर महादेव मंदिर यहाँ के प्रमुख आध्यात्मिक स्थल हैं। हाल ही में बनी कोलीडेक झील में आप नैनीताल जैसी जल गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं।
- खानपान: यहाँ का स्वादिष्ट कुमाऊनी भोजन जैसे भट्ट की चुड़कानी और गहद की दाल ज़रूर आज़माएँ।
- मौसम और पहुँच: बरसात को छोड़कर, लोहाघाट का मौसम साल भर सुहावना रहता है। गर्मियों में (मार्च से जुलाई) तापमान 15-25°C रहता है। पंतनगर एयरपोर्ट (175 कि.मी.) और टनकपुर रेलवे स्टेशन (90 कि.मी.) यहाँ के नज़दीकी पहुँच बिंदु हैं। दिल्ली से यह लगभग 400 कि.मी. दूर है। यहाँ केएमवीएन गेस्ट हाउस और अन्य सस्ते आवास विकल्प उपलब्ध हैं।
3. सोमेश्वर: कोसी और साईं के संगम पर बसा शांति का स्वर्ग
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित सोमेश्वर, मेन अल्मोड़ा से 40 कि.मी. और कौसानी से 24 कि.मी. दूर है। यह कोई व्यावसायिक पर्यटन स्थल नहीं है, इसलिए यहाँ आपको अछूती कुमाऊनी संस्कृति और जीवनशैली देखने को मिलेगी।
- विशेषताएँ: कोसी और साईं नदी के संगम पर बसे इस शहर में हरे-भरे खेत, देवदार के घने जंगल और हिमालय की चोटियों के नज़ारे मन मोह लेते हैं। यह जगह मेडिटेशन, मानसिक शांति और प्रकृति प्रेमियों के लिए आदर्श है। 10वीं या 11वीं शताब्दी में राजा सोमचंद द्वारा निर्मित प्रसिद्ध सोमेश्वर महादेव मंदिर यहाँ का मुख्य आकर्षण है।
- भोजन: यहाँ आपको नीमडुए की रोटी, भटकी चुड़कानी, आलू के गुटके और गहद की दाल जैसे पारंपरिक कुमाऊनी व्यंजन मिलेंगे।
- आवास और परिवहन: यह एक बजट-फ्रेंडली डेस्टिनेशन है, जहाँ गेस्ट हाउस ₹800 से शुरू होते हैं, पीक सीज़न में भी ज़्यादा महंगे नहीं होते। पंतनगर एयरपोर्ट (160 कि.मी.) और सड़क मार्ग (दिल्ली से लगभग 400 कि.मी.) से यहाँ पहुँच सकते हैं।
4. ग्वालदम: गढ़वाल और कुमाऊं का मिलन बिंदु, जहाँ हिमालय छूने को आतुर लगता है
चमोली (गढ़वाल) और बागेश्वर (कुमाऊं) जिलों के बीच स्थित ग्वालदम, उत्तराखंड के भूगोल में एक बड़ी भूमिका निभाता है। बांज, बुरांश, देवदार के घने जंगल, पहाड़, हिमालय, नदियाँ और झरने – प्रकृति ने ग्वालदम पर अपनी सारी सुंदरता लुटा दी है।
- अद्वितीय अनुभव: यहाँ से नंदा देवी, त्रिशूल और नंदगुंटी जैसी हिमालय की सबसे ऊँची चोटियाँ साफ़ दिखाई देती हैं। यहाँ एक छोटी सी झील भी है, जिसमें हिमालय का प्रतिबिंब एक अलग ही नज़ारा पेश करता है। ग्वालदम में एक बहुत सुंदर बौद्ध मोनेस्ट्री भी है, जो शांत और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करती है। 6 कि.मी. दूर बंधागढ़ मंदिर से कत्यूर घाटी और हिमालय की कई घाटियों का शानदार नज़ारा दिखता है।
- संस्कृति और भोजन: यहाँ गढ़वाली और कुमाऊनी दोनों संस्कृतियों का मिश्रण देखने को मिलता है। यहाँ के लोग आलू और सेब की खेती करते हैं।
- यात्रा सुझाव: मार्च से जुलाई गर्मियों में राहत पाने के लिए अच्छा है, जबकि सर्दियों में स्नोफॉल के लिए ज़रूर आना चाहिए। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून (210 कि.मी.) या काठगोदाम रेलवे स्टेशन (180 कि.मी.) से टैक्सी या शेयर जीप ली जा सकती है। अपनी गाड़ी से यात्रा करना सबसे सुविधाजनक है।
5. रामगढ़: लेखकों की भूमि और दिल्ली से मात्र 6 घंटे की दूरी पर
नैनीताल के रामगढ़ को "लेखकों की भूमि" भी कहा जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर और महादेवी वर्मा जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार यहाँ की शांति और प्राकृतिक खूबसूरती से बहुत प्रभावित हुए थे। महादेवी वर्मा का घर अब महादेवी वर्मा संग्रहालय के रूप में प्रसिद्ध है। यह एक ऐसी उत्तराखंड ऑफबीट डेस्टिनेशन है जो दिल्ली से केवल 6-7 घंटे की दूरी पर है।
- प्राकृतिक सौंदर्य: यहाँ प्रकृति अपने सबसे बेहतरीन रूप में झलकती है। रामगढ़ की चोटियों से हिमालय के नज़ारे, खासकर टैगोर टॉप से सूर्यास्त और सूर्योदय का अद्भुत दृश्य, अविस्मरणीय होता है। देवदार और ओक के घने जंगलों के बीच बसे इस गाँव में आड़ू, प्लम, नाशपाती, खुबानी और सेब के कई बगीचे हैं। फरवरी और मार्च में फूलों से पूरी घाटी रंग-बिरंगी हो जाती है।
- गतिविधियाँ: ट्रेकिंग और नेचर वॉक के अलावा, आप 15 कि.मी. दूर भालूगढ़ वॉटरफॉल पर कई तरह की एडवेंचर एक्टिविटीज का आनंद ले सकते हैं। मुक्तेश्वर (20 कि.मी.), भीमताल, नैनीताल और नौकुचियाताल भी यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं हैं।
- पहुँच: गर्मियों (मार्च से जून) में यहाँ का मौसम सुहावना रहता है। पंतनगर एयरपोर्ट (75 कि.मी.) से टैक्सी द्वारा ढाई से तीन घंटे में पहुँच सकते हैं। काठगोदाम रेलवे स्टेशन (45 कि.मी.) यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन है।
ये सभी उत्तराखंड के ऑफबीट डेस्टिनेशंस आपको भीड़-भाड़ से दूर एक अनोखा अनुभव प्रदान करेंगे, जहाँ आप प्रकृति की गोद में शांति और सुकून महसूस कर सकते हैं। अपनी अगली यात्रा को अविस्मरणीय बनाने के लिए इनमें से किसी भी जगह का चुनाव करें।
FAQs (पूछे जाने वाले सवाल):
Q1: उत्तराखंड में भीड़-मुक्त घूमने के लिए कौन सी जगहें सबसे अच्छी हैं? A1: उत्तराखंड में भीड़-मुक्त घूमने के लिए पंगोट, लोहाघाट, सोमेश्वर, ग्वालदम और रामगढ़ जैसी जगहें सबसे अच्छी हैं। ये उत्तराखंड ऑफबीट डेस्टिनेशन अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांतिपूर्ण वातावरण के लिए जानी जाती हैं, जहाँ आपको भीड़ कम मिलेगी।
Q2: पंगोट में क्या खास है और यह कहाँ स्थित है? A2: पंगोट नैनीताल जिले में स्थित एक 'हिडन जैम' है, जो अपनी हरे-भरे जंगलों, ठंडी हवा और पक्षियों की चहचहाहट के लिए खास है। यह बर्डवॉचर्स के लिए स्वर्ग माना जाता है, जहाँ 350 से ज़्यादा प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते हैं।
Q3: लोहाघाट उत्तराखंड का सांस्कृतिक महत्व क्या है? A3: लोहाघाट को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। यहाँ का समृद्ध इतिहास, प्राचीन मंदिर और मायावती आश्रम जैसे स्थल इसे सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाते हैं, जहाँ स्वामी विवेकानंद ने भी समय बिताया था।
Q4: सोमेश्वर किस प्रकार की यात्रा के लिए उपयुक्त है? A4: सोमेश्वर शांति और एकांत की तलाश में भटक रहे लोगों, प्रकृति प्रेमियों, लेखकों और कलाकारों के लिए उपयुक्त है। यह मेडिटेशन और मानसिक शांति के लिए एक बेहतरीन उत्तराखंड ऑफबीट डेस्टिनेशन है, जहाँ आपको अछूती कुमाऊनी संस्कृति देखने को मिलती है।
Q5: रामगढ़ दिल्ली से कितनी दूर है और वहाँ क्या खास है? A5: रामगढ़ दिल्ली से लगभग 6-7 घंटे की दूरी पर स्थित है। इसे 'लेखकों की भूमि' कहा जाता है क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर और महादेवी वर्मा जैसे साहित्यकार यहाँ से प्रभावित थे। यहाँ से हिमालय के शानदार नज़ारे और फलों के बागान खास हैं।