Tariff On Indian Pharma: 100% ड्यूटी से भारत को कितना बड़ा नुकसान, क्या है अमेरिकी मंसूबा और बचाव के रास्ते?
Tariff से डरे बिना भारत ने की पलटवार की तैयारी। 100% ड्यूटी लगाने के पीछे डोनाल्ड ट्रंप की क्या है असल चाल? जानें भारतीय फार्मा इंडस्ट्री पर $12.72 बिलियन के संभावित नुकसान का पूरा हिसाब और सरकार की नई रणनीति।

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 26 Sep 2025
भारत की विशाल फार्मा इंडस्ट्री (Pharmaceutical Industry) और अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली (US Health Care System) को हिलाकर रख देने वाली एक बड़ी खबर सामने आई है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय फार्मास्यूटिकल्स पर 100% टेरिफ लगाने की घोषणा कर दी है, जिससे भारत को सीधे तौर पर $12.72 बिलियन (12.72 अरब डॉलर) के निर्यात का नुकसान होने की आशंका है। यह कोई पहली व्यापारिक चेतावनी नहीं है; इससे पहले भी ट्रंप 26% टैरिफ, फिर 50% टैरिफ और H-1B वीजा जैसे मुद्दों पर भारत पर दबाव बना चुके हैं। यह अचानक लिया गया एक कठोर निर्णय है, जिसे ट्रंप ने बिना किसी पूर्व चेतावनी या बातचीत के सीधे 'ट्रुथ सोशल' पर पोस्ट कर दिया है। हालांकि, भारत को लगभग तीन-चार महीने पहले से ही यह स्पष्ट हो चुका था कि ट्रंप बिना समय दिए अचानक कोई बड़ी कार्रवाई करेंगे। यह कार्रवाई न केवल भारतीय कंपनियों के लिए संकट है, बल्कि अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए भी खतरे की घंटी है, क्योंकि भारतीय दवाइयां अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली के हर 10 में से 4 प्रिस्क्रिप्शन की आपूर्ति करती हैं, और 2013 से 2022 के बीच अमेरिका के $1.3 ट्रिलियन (1.3 खरब डॉलर) की बचत की थी। अब यह समझना आवश्यक है कि इस बड़ी Tariff घोषणा के पीछे ट्रंप का वास्तविक इरादा क्या है, और भारतीय उद्योग जगत तथा सरकार इस खतरे से निपटने के लिए क्या तैयारी कर रहे हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय फार्मास्यूटिकल्स (विशेष रूप से ब्रांडेड और पेटेंटेड उत्पादों) पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा 26 सितंबर को की और यह 1 अक्टूबर से प्रभावी होने वाला है। यह टैरिफ भारतीय दवाइयों पर तब तक लागू रहेगा जब तक कि कोई भारतीय फार्मा कंपनी अमेरिका में अपनी विनिर्माण इकाई (manufacturing plant) स्थापित करना शुरू नहीं कर देती। यदि कंपनी निर्माण शुरू करने की मंशा दिखाती है, या बिल्डिंग का कंस्ट्रक्शन शुरू हो जाता है, तो उस पर 0% टैरिफ लगेगा। यह घोषणा ट्रंप द्वारा भारत पर किया गया 'चौथा वार' बताया जा रहा है। भारत 2024 में अमेरिका को $12.72 अरब डॉलर मूल्य की फार्मास्यूटिकल वस्तुओं का निर्यात करता था। इस 100% ड्यूटी का सीधा अर्थ यह है कि हमारा कुल $12.72 बिलियन का व्यापार खतरे में पड़ सकता है, हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार यह केवल आधी तस्वीर है। जैसे ही यह खबर आई, 26 सितंबर को ही भारतीय फार्मास्यूटिकल स्टॉक्स में भारी गिरावट दर्ज की गई। सन फार्मा (Sun Pharma) को 52 सप्ताह के निचले स्तर पर पहुँचते हुए 5% की गिरावट झेलनी पड़ी, जबकि बायोकॉन (Biocon) में 3.3% और ज़ायडस लाइफ साइंसेज (Zydus Life Sciences) में 2.8% की गिरावट आई। सुबह 9:30 बजे तक निफ्टी फार्मा इंडेक्स (Nifty Pharma Index) 2.54% तक गिर गया था। हालांकि, भारत सरकार को यह स्पष्ट है कि ट्रंप इस तरह के अचानक कदम उठाएंगे, और उम्मीद है कि ये स्टॉक दो से तीन सप्ताह के भीतर स्थिर हो जाएंगे।
इस टैरिफ का असर सिर्फ भारत पर ही नहीं होगा, बल्कि यह अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली (US Health Care System) के लिए भी एक बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है। भारतीय फार्मा कंपनियां अमेरिका में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं; 2022 में, अमेरिका में भरे गए हर दस प्रिस्क्रिप्शन में से चार (40%) भारतीय थे। भारतीय फर्मों की दवाइयाँ सस्ती और विश्वसनीय होने के कारण अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भारी बचत कराती रही हैं। रिपोर्टों के अनुसार, केवल 2022 में ही भारतीय दवाइयों ने यूएस हेल्थ केयर सिस्टम के $219 बिलियन डॉलर बचाए थे। इसके अलावा, 2013 से 2022 के नौ वर्षों के दौरान, भारतीय फर्मों ने अमेरिका के लिए कुल $1.3 ट्रिलियन डॉलर की बचत की। यदि भारतीय दवाइयाँ 100% टैरिफ के कारण महंगी हो जाती हैं या उनकी आपूर्ति बाधित होती है, तो अमेरिका को इन सस्ती, सुरक्षित और नियमित सप्लाई वाली दवाओं का विकल्प खोजना पड़ेगा, जिसकी लागत $219 अरब डॉलर या उससे भी अधिक हो सकती है। यह कदम अमेरिका में "महंगाई का तूफान" ला सकता है। ट्रंप का यह कदम मुख्य रूप से 'आत्मनिर्भर अमेरिका' (Atmanirbhar America) की नीति को बढ़ावा देने के लिए है, जिसके तहत वह भारतीय कंपनियों को अमेरिका में ही फैक्ट्री लगाने के लिए मजबूर करना चाहते हैं।
ट्रंप का 'आत्मनिर्भर अमेरिका' एजेंडा: 100% टैरिफ क्यों लगाया गया? (Tariff, आत्मनिर्भर अमेरिका)
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा यह 100% Tariff थोपने के पीछे मुख्य कारण भारतीय फार्मा कंपनियों को अमेरिका में ही विनिर्माण करने के लिए बाध्य करना है। उनका उद्देश्य स्पष्ट है: अमेरिकी जमीन पर ही निर्माण हो। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया है कि यदि कोई कंपनी अमेरिका में अपना फार्मास्यूटिकल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बनाना शुरू कर देती है (जिसे बिल्डिंग बनाने या कंस्ट्रक्शन शुरू करने के रूप में परिभाषित किया गया है), तो उस पर कोई टैरिफ नहीं लगाया जाएगा। ट्रंप का यह मानना है कि कंपनियां को मजबूर किया जा सकता है कि वे अमेरिका में फैक्ट्री ही बनाएं, तभी बात बनेगी। हालांकि, भारतीय उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की जबरदस्ती और अचानक की कार्रवाई तर्कसंगत नहीं है, क्योंकि एक नई फैक्ट्री को बनने में कम से कम दो से तीन साल लग सकते हैं। यदि अमेरिका वास्तव में चाहता था कि भारतीय कंपनियां अमेरिकी जमीन पर निर्माण करें, तो उचित रास्ता यह होता कि अमेरिका भारत की व्यापारिक संस्थाओं (जैसे फिक्की या एसोचैम) के साथ बैठक बुलाता, उन्हें जमीन, रियायतें या अन्य प्रोत्साहन देने की पेशकश करता और बातचीत के माध्यम से समाधान निकालता। ट्रंप ने इसके बजाय केवल एक ट्वीट (ट्रुथ सोशल पर) कर दिया, धन्यवाद कहा, और मामला खत्म कर दिया। यह अरबपति राष्ट्रपति की सोच को दर्शाता है, जिसे महंगाई के तूफान (Inflation Storm) से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
रूस-यूक्रेन के बहाने तेल कूटनीति: क्या भारत पर दबाव बना रहा है अमेरिका? (रूसी तेल, Energy Trade)
फार्मा टैरिफ की धमकी के समानांतर ही, यूएस प्रशासन लगातार भारत पर रूस से सस्ता कच्चा तेल (Discounted Russian Crude) खरीदने को बंद करने का दबाव बना रहा है। यूएस एनर्जी सेक्रेटरी क्रिस राइट ने भारत से अपने रूसी तेल खरीद पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। ऊपरी तौर पर, अमेरिका यह प्रदर्शित करता है कि उसका उद्देश्य पुतिन के यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई (Military Intervention in Ukraine) को समाप्त करना है, इसलिए वह भारत पर दंडात्मक टैरिफ (Punitive Tariffs) नहीं लगाना चाहता। लेकिन जैसे-जैसे इस कूटनीति की परतें खुलती हैं, पता चलता है कि असली खेल कुछ और है—यह सिर्फ मार्केट में माल बेचने का मामला है। क्रिस राइट ने भारत को सलाह दी कि उसे रूसी तेल खरीदने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह "हजारों लोगों को हर हफ्ते मारने वाले व्यक्ति" को पैसा दे रहा है। हालांकि, उनका मुख्य तर्क यह था कि:
- हम चाहते हैं कि भारत हमारे साथ काम करे और हमसे तेल खरीदे (वी विश इंडिया वुड वर्क विथ अस टू बाय ऑयल)।
- अमेरिका के पास तेल बेचने के लिए है, और दुनिया में कई अन्य निर्यातक हैं।
- भारत किसी भी राष्ट्र से तेल खरीद सकता है, बस रूस से न खरीदे।
यह बयानबाजी अमेरिकी एनर्जी कोऑपरेशन को बढ़ावा देने के लिए थी। एनर्जी सेक्रेटरी ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे "मोर एनर्जी ट्रेड" और "एनर्जी कोऑपरेशन" चाहते हैं। यह साफ दोगलापन है, क्योंकि जब यह कहा जाता है कि भारत दुनिया में किसी से भी तेल खरीद सकता है (सिर्फ रूस को छोड़कर), तो यह झूठ साबित होता है। यदि भारत ईरान या वेनेजुएला से तेल खरीदने की कोशिश करे, तो अमेरिका उसे अनुमति नहीं देगा। अमेरिका का एकमात्र फोकस भारत के पास मौजूद मोटे पैसे पर है, जो पुतिन के पास जा रहे हैं, और वह पैसा अमेरिका को चाहिए। भारत दुनिया में जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) के शीर्ष तीन उपभोक्ताओं में से है। यदि भारत का बाजार अमेरिका की ओर शिफ्ट हो जाता है, तो यह यूएस के लिए सबसे बड़ी सफलता होगी।
बाजारों को स्थिर करने की भारत की जवाबी तैयारी और नई व्यापारिक दिशा (India’s Pharma Strategy)
भारत सरकार और फार्मा उद्योग इस व्यापारिक दबाव को झेलने के लिए पहले से ही रणनीतिक तैयारी कर रहे हैं। भारत को पता है कि डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता समय नहीं देंगे और अचानक कार्रवाई करेंगे। इसलिए, अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए, भारत ने अपनी दवा निर्यात रणनीति में बदलाव करना शुरू कर दिया है।
भारत की नई रणनीति के तहत निम्नलिखित कदम उठाए जा रहे हैं:
- सेमी-रेगुलेटेड बाजारों पर फोकस: भारत अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया (South East Asia) में दवा निर्यात को बढ़ावा देने की योजना बना रहा है, ताकि अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम की जा सके।
- चीन को फिनिश्ड गुड्स निर्यात: फार्मा एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया (Pharmexcil) चीन को तैयार माल (Finished Goods) बेचने पर जोर दे रहा है, जिससे व्यापार घाटे (Trade Deficit) को कम किया जा सके। यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत अपनी 60% से अधिक कच्चा माल (Raw Material) और सक्रिय फार्मास्यूटिकल सामग्री (APIs) चीन से आयात करता है।
- स्टॉक स्थिरता: भारतीय उद्योग जगत मानता है कि शेयर बाजार में गिरावट अस्थायी है और दो-तीन हफ्तों में स्टॉक स्थिर हो जाएंगे।
यह केवल फार्मा सेक्टर तक ही सीमित नहीं है। भारत पहले ही टेक्सटाइल और रत्न एवं आभूषण (Gems and Jewelry) के निर्यात में भी यह रणनीति अपना चुका है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस और चीन जैसे कई देशों ने भारतीय सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं, जिससे अमेरिका जाने की अनिवार्यता कम हुई है। इस वर्ष के अंत तक भारत इस Tariff संकट से निपटने और बाजार को स्थिर करने में सक्षम हो जाएगा, भले ही भविष्य में ट्रंप 1000% टैरिफ लगा दें, भारत को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।
वीआईपी ट्रीटमेंट का फॉर्मूला: तुर्की, F35 और तेल की डील (Turkey, F35)
अमेरिका की व्यापारिक कूटनीति की लेनदेन वाली प्रकृति (transactional nature) को समझने के लिए तुर्की (Turkey) का उदाहरण महत्वपूर्ण है। ट्रंप ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयब अर्दोगन (Recep Tayyip Erdogan) से मुलाकात की और उनसे भी रूसी तेल खरीदना बंद करने का आग्रह किया। हालांकि, तुर्की भी रूसी तेल खरीद रहा है, लेकिन ट्रंप ने उस पर भारत की तरह दंडात्मक Tariff या सेंशन्स नहीं लगाए। इसका कारण सीधा व्यापारिक सौदा है: तुर्की F-35 और F-16 जेट्स खरीदना चाहता है, जिसे बाइडन प्रशासन ने S-400 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम खरीदने के कारण रोक दिया था। ट्रंप ने इशारा किया कि तुर्की को वह सामान खरीदने में सफलता मिलेगी, जो वह खरीदना चाहता है।
- वीआईपी पास: यदि भारत 114 राफेल जेट की डील को रद्द कर दे और इसके बजाय अमेरिका के बोइंग (Boeing) या अन्य कंपनियों से F-15 या F-21 जैसे 114 फाइटर जेट्स या पाँच स्क्वाड्रन F-35 जेट्स खरीदने की घोषणा कर दे, तो भारत तुरंत अमेरिका के लिए वीआईपी बन जाएगा।
- व्यापारिक प्राथमिकता: तुर्की पर टैरिफ न लगाना और उसे F-35 की बिक्री की संभावना खोलना यह सिद्ध करता है कि अमेरिका के लिए यूक्रेन या मानवता का मुद्दा गौण है; मुख्य मुद्दा यह है कि अमेरिका को कुछ चीजें चाहिए (फाइटर जेट्स और तेल का बाजार) और दूसरे देश को कुछ चाहिए। रूस ने भी तुर्की से अपने S-400 सिस्टम वापस खरीदने की पेशकश की है, ताकि तुर्की F-35 और पैट्रियट मिसाइलें खरीद सके, जो दोनों पक्षों के हित में है।
पाकिस्तान के साथ नया समझौता: बलूचिस्तान के खनिज और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों पर नजर (Pakistan Minerals, Balochistan)
अमेरिकी कूटनीति सिर्फ फार्मा और तेल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका विस्तार पाकिस्तान के साथ खनिज और प्राकृतिक संसाधनों के शोषण तक भी है। ट्रंप और पाकिस्तान के अधिकारियों (प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर) के बीच बैठकें हुई हैं, जिसमें द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इन समझौतों में से एक महत्वपूर्ण समझौता पाकिस्तान द्वारा अमेरिका को क्रिटिकल मिनरल्स और रेयर अर्थ एलिमेंट्स (दुर्लभ पृथ्वी तत्व) की आपूर्ति से संबंधित है। एक अमेरिकी फर्म बलूचिस्तान के खनिजों में 500 मिलियन डॉलर का निवेश कर रही है। ट्रंप ने पाकिस्तान के विशाल तेल भंडार (Oil Reserves) को विकसित करने के लिए भी काम करने का वादा किया था।
यह पूरा खेल बलूचिस्तान के दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण स्थापित करने का है। पाकिस्तान सेना द्वारा बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में किए जा रहे बड़े सैन्य ऑपरेशन इसलिए हो रहे हैं ताकि स्थानीय आबादी को विस्थापित किया जा सके और उस इलाके को 'साफ' किया जा सके। एक बार जब स्थानीय लोग भाग जाएंगे, तब गोरा (विदेशी) आएगा, जमीन लूटेगा, और इस पूरी लूट को 'द ग्रेट पाकिस्तान आर्मी' द्वारा फैसिलिटेट किया जाएगा। यह समझौता पाकिस्तान के आयात पर 19% टैरिफ लगाता है, लेकिन वाशिंगटन को पाकिस्तान के तेल भंडारों के विकास में मदद करने की अनुमति देता है। यह दिखाता है कि वाशिंगटन में जो हो रहा है—चाहे वह भारत पर Tariff हो, तुर्की से डील हो, या पाकिस्तान से खनिज समझौता—यह सब 'माल बेचने' और 'लूट मचाने' की रणनीति का हिस्सा है।
Conclusion
संक्षेप में, डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय फार्मास्यूटिकल्स पर 100% Tariff लगाने की धमकी भारत को अमेरिका में विनिर्माण इकाई स्थापित करने के लिए मजबूर करने का एक स्पष्ट प्रयास है, जिसे 'आत्मनिर्भर अमेरिका' की नीति के तहत देखा जा रहा है। यह कदम अमेरिका के स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बचत को खतरे में डालता है, जिसने 2013-2022 के बीच भारतीय जेनेरिक दवाओं से $1.3 ट्रिलियन बचाए थे। वहीं, रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाने का अमेरिकी आग्रह भी यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की नैतिक चिंता के बजाय, अमेरिकी एनर्जी ट्रेड को बढ़ावा देने की एक सीधी सेल्स पिच है। भारत इस दोहरे दबाव का सामना करने के लिए तैयार है और उसने पहले ही अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे बाजारों में निर्यात बढ़ाने की दिशा में कार्रवाई शुरू कर दी है, जिससे साल के अंत तक अमेरिका पर निर्भरता कम हो जाएगी और बाजार स्थिर हो जाएगा। यह पूरी घटनाक्रम वैश्विक व्यापार में सिर्फ लेनदेन (Trade) और भू-राजनीतिक स्वार्थों की पुष्टि करता है, जैसा कि तुर्की और पाकिस्तान के साथ समझौतों में भी स्पष्ट होता है।
FAQs (5 Q&A):
1. Indian Pharma पर 100% Tariff कब से लागू हो रहा है?
डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि भारतीय ब्रांडेड या पेटेंटेड फार्मास्यूटिकल उत्पादों पर 100% Tariff 1 अक्टूबर से लागू होगा। हालांकि, यह शुल्क उन कंपनियों पर नहीं लगेगा जो अमेरिका में अपना नया विनिर्माण संयंत्र (Manufacturing Plant) स्थापित करना शुरू कर देंगी।
2. 100% Tariff लगने से भारत को संभावित रूप से कितना नुकसान होगा?
वर्ष 2024 में भारत ने अमेरिका को कुल $12.72 बिलियन मूल्य के फार्मास्यूटिकल उत्पादों का निर्यात किया था। 100% Tariff लगने से भारत को सैद्धांतिक रूप से इस पूरी निर्यात राशि यानी $12.72 अरब डॉलर का सीधा नुकसान हो सकता है।
3. Tariff के बावजूद, भारतीय दवाइयां अमेरिका के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं?
भारतीय दवाइयां अमेरिका के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बेहद सस्ती हैं और बड़ी बचत कराती हैं। 2022 में, भारतीय फर्मों की दवाओं ने अकेले अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के $219 बिलियन डॉलर बचाए थे और वे अमेरिका के 40% प्रिस्क्रिप्शन को पूरा करती हैं।
4. अमेरिकी अधिकारी भारत को रूसी तेल खरीदने से क्यों रोक रहे हैं?
अमेरिकी एनर्जी सेक्रेटरी क्रिस राइट ने कहा कि वे भारत को दंडात्मक Tariff लगाकर दंडित नहीं करना चाहते। बल्कि, वे भारत को रूस से तेल खरीद बंद करने के लिए कह रहे हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि भारत अमेरिका से तेल खरीदे, क्योंकि यह पूरा मामला 'मोर एनर्जी ट्रेड' का है।
5. भारतीय फार्मा इंडस्ट्री Tariff के खतरे से निपटने के लिए क्या कर रही है?
भारत ने अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए अपनी निर्यात रणनीति बदल दी है। भारतीय फर्में अब अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे सेमी-रेगुलेटेड बाजारों में दवा निर्यात बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।