अमेरिका से भारतीयों का धड़ाधड़ डिपोर्टेशन: क्या है 'डंकी' रूट की सच्चाई और क्यों हो रही घर वापसी?

अमेरिका से लगातार भारतीयों की घर वापसी हो रही है, खासकर 'डंकी' रूट से गए लोगों की। जानें कैसे ट्रंप की नीतियों ने बदला खेल, जेल में 11 महीने बिताकर लौटे विक्रम ढांडा की आपबीती और 'डंकी' रूट से जुड़े खतरों की पूरी सच्चाई।

Aug 13, 2025 - 23:48
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अमेरिका से भारतीयों का धड़ाधड़ डिपोर्टेशन: क्या है 'डंकी' रूट की सच्चाई और क्यों हो रही घर वापसी?
अमेरिका से भारतीयों का धड़ाधड़ डिपोर्टेशन: 'डंकी' रूट की सच्चाई

लाखों खर्च कर अमेरिका गए हजारों भारतीय अब धड़ाधड़ हो रहे हैं डिपोर्ट। अगर आप भी अमेरिका जाकर बेहतर भविष्य बनाने का सपना देख रहे हैं, तो 'डंकी' रूट के खतरों और वर्तमान स्थिति को जानना आपके लिए बेहद ज़रूरी है। यह खबर उन सभी लोगों के लिए है जो अवैध तरीकों से विदेश जाने का विचार कर रहे हैं, ताकि वे किसी बड़ी मुसीबत से बच सकें।

अमेरिका से भारतीयों का डिपोर्टेशन लगातार जारी है। जहां कुछ समय पहले डिपोर्ट किए गए भारतीयों को हथकड़ियों में भेजा जा रहा था, वहीं अब एयर इंडिया के विशेष विमानों से बिना हथकड़ी उन्हें सीधे भारत भेजा जा रहा है। हाल ही में हरियाणा के हिसार जिले के मिजपुर गांव के विक्रम ढांडा ने 'डंकी' रूट से अमेरिका जाने की अपनी आपबीती साझा की, जो किसी भी भारतीय के लिए एक चेतावनी है। विक्रम ने बताया कि उनके साथ एक ही जहाज से 192 लोगों को डिपोर्ट किया गया था, और उसके बाद भी लगातार 200, फिर 100 जैसे बड़े समूह में लोगों को वापस भेजा जा रहा है। ट्रंप प्रशासन का लक्ष्य 10-15 हज़ार बाहरी लोगों को डिपोर्ट करना है।

लाखों का खर्च और 11 महीने जेल में: विक्रम ढांडा की कहानी बेहद दर्दनाक है। उन्होंने अमेरिका पहुंचने के लिए अपने परिवार की दो किले ज़मीन बेचकर लगभग 50-60 लाख रुपये खर्च किए थे। सात महीने के लंबे सफर के बाद, वह मेक्सिको के तिजुआना से अमेरिका सीमा पार करते ही पकड़े गए। सीमा पार करने के पांच किलोमीटर बाद ही उन्होंने खुद ही अमेरिकी पुलिस को फोन कर अपनी गिरफ्तारी दी, ताकि उन्हें असाइलम (शरण) मिल सके। हालांकि, विक्रम 11 महीने तक अमेरिका की जेलों और डिटेंशन कैंपों में रहे और अमेरिका को देख भी नहीं पाए

'डंकी' रूट का भयानक सफर और दलालों का छल: विक्रम ने बताया कि 'डंकी' रूट का सफर किसी जहन्नुम से कम नहीं। दलालों ने उन्हें फ्लाइट से अमेरिका भेजने का वादा किया था, लेकिन वे ब्राजील से आगे जंगल के रास्ते से ले गए। इस यात्रा में ब्राजील से लेकर पनामा के घने जंगल और नदियां शामिल थीं। पनामा की नदियों में नावों में 10 लोगों की जगह 30-30 लोगों को बिठाया जाता था, जिससे नाव पलटने का डर बना रहता था। रास्ते में लूटपाट भी आम बात थी, जहां पुलिसकर्मी और एजेंट डॉलर व एप्पल फोन छीन लेते थे। यहां तक कि कंटेनर में कई-कई दिन बिना बाथरूम और खाने-पीने की सुविधा के गुजारने पड़े।

अमेरिकी डिटेंशन कैंपों की अमानवीय स्थिति: विक्रम को सैन डिएगो और फिर मिसिसिपी के कैंपों में रखा गया। उनका कैंप 2000-2500 लोगों की क्षमता वाला था, जिसमें 300-420 लोग एक बैरक में रहते थे। खाने में दलिया, मीठा, फीका और राजमा मिलता था, जो बस भूख मिटाने के लिए था, स्वादिष्ट नहीं। कैंप में 11 महीने बिताने के बाद भी विक्रम को वर्क परमिट नहीं मिला और उन्हें डिपोर्ट कर दिया गया। अब, ट्रंप के नए नियमों के बाद से डिटेंशन कैंपों से किसी को भी बाहर नहीं छोड़ा जा रहा है, और रिहाई की दर शून्य प्रतिशत है।

ट्रंप की सख्त नीतियां और 'डंकी' रूट का अंत: ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्त रुख अपना लिया है। अमेरिकी-मेक्सिको सीमा पर दीवारें बनाई जा रही हैं, तारें लगाई जा रही हैं, और ड्रोन कैमरों से लगातार निगरानी की जा रही है। अब 'डंकी' रूट से अमेरिका में प्रवेश पूरी तरह बंद हो चुका है। यदि कोई सीमा पार करने की कोशिश भी करता है, तो उसे 10-20 दिन के भीतर ही डिपोर्ट कर दिया जाता है। विक्रम जैसे डिपोर्ट हुए व्यक्तियों पर 10 साल का अमेरिका में प्रवेश पर बैन लग गया है।

सुरक्षित और कानूनी तरीके अपनाएं: विशेषज्ञों का कहना है कि अवैध 'डंकी' रूट के बजाय, भारतीयों को कानूनी और सुरक्षित तरीकों से विदेश जाना चाहिए। दुबई, सिंगापुर, ग्रीस और हंगरी जैसे कई देश हैं जो आसानी से वर्क वीजा प्रदान करते हैं। लाखों रुपये खर्च कर जान जोखिम में डालने और भविष्य बर्बाद करने से बेहतर है कि आप वैध रास्ते अपनाएं।


  • FAQ सेक्शन:
  • Q1: अमेरिका से 'डंकी' रूट के ज़रिए भारतीयों को क्यों डिपोर्ट किया जा रहा है? A1: अमेरिका से 'डंकी' रूट (अवैध प्रवेश) के ज़रिए गए भारतीयों को इसलिए डिपोर्ट किया जा रहा है क्योंकि वे कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना देश में दाखिल हुए हैं। ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासन को रोकने के लिए अपनी नीतियों को बहुत सख्त कर दिया है, जिसके तहत पकड़े गए सभी अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकाला जा रहा है।
  • Q2: 'डंकी' रूट से अमेरिका पहुंचने में कितना खर्च और समय लगता है? A2: 'डंकी' रूट से अमेरिका पहुंचने में बहुत अधिक खर्च और समय लगता है। विक्रम ढांडा के अनुसार, इसमें लगभग 50-60 लाख रुपये का खर्च आया और उन्हें अमेरिका की सीमा तक पहुंचने में लगभग 7 महीने लगे। इस यात्रा में एजेंट अक्सर धोखे देते हैं और खतरनाक रास्तों से ले जाते हैं।
  • Q3: अमेरिका में पकड़े जाने पर किस तरह की जेल या कैंप में रखा जाता है? A3: अमेरिका में पकड़े जाने पर अवैध प्रवासियों को डिटेंशन कैंपों में रखा जाता है। ये कैंप सरकारी और निजी दोनों हो सकते हैं। विक्रम को सैन डिएगो और मिसिसिपी के कैंपों में 11 महीने तक रखा गया था। इन कैंपों में खाने-पीने और रहने की बुनियादी सुविधाएं तो होती हैं, लेकिन कई बार भीड़भाड़ और अमानवीय परिस्थितियां भी होती हैं।
  • Q4: क्या 'डंकी' रूट से अमेरिका जाने वालों को वर्क परमिट या ग्रीन कार्ड मिल सकता है? A4: 'डंकी' रूट से अमेरिका जाने वालों को कैंप के अंदर वर्क परमिट नहीं मिलता है। ग्रीन कार्ड मिलना किस्मत और केस पर निर्भर करता है। हालांकि, 21 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए 'अडॉप्टशन' का विकल्प होता है, जिसमें कोई अमेरिकी नागरिक उन्हें गोद ले सकता है। इस तरीके से ग्रीन कार्ड मिलने की 100% संभावना होती है, लेकिन इसमें भी लगभग 25-30 लाख रुपये का अतिरिक्त खर्च आता है। सामान्य असाइलम केस (राजनीतिक या धार्मिक) के पास होने की संभावना बहुत कम होती है।
  • Q5: डिपोर्ट होने के बाद दोबारा अमेरिका जाने के क्या नियम हैं और क्या कोई कानूनी रास्ता है? A5: 'डंकी' रूट से डिपोर्ट होने वाले व्यक्तियों पर अमेरिका में 10 साल का बैन लग जाता है। यदि कोई इस बैन के दौरान दोबारा अवैध तरीके से जाने की कोशिश करता है, तो उसे जेल और जुर्माने का सामना करना पड़ता है। 10 साल बाद टूरिस्ट वीजा के लिए आवेदन किया जा सकता है, लेकिन अवैध तरीके से प्रवेश की कोशिश नहीं करनी चाहिए। सुरक्षित और कानूनी रूप से जाने के लिए वर्क वीजा वाले देशों जैसे दुबई, सिंगापुर, ग्रीस या हंगरी जैसे विकल्पों पर विचार करना बेहतर है।
Neeraj Ahlawat Neeraj Ahlawat is the founder and lead author of Dainik Realty, a trusted digital news platform. With over a decade of experience in journalism, Neeraj has reported on diverse issues ranging from politics and economy to society and culture. Alongside journalism, he also works as a digital marketing consultant, specializing in SEO, Google Ads, and analytics. His mission is to support sustainable businesses, charities, and organizations that create a positive impact on society.