भारत-चीन व्यापार: अमेरिका को झटका! मोदी-जिनपिंग डील से भारत को अप्रत्याशित लाभ?

अमेरिकी कर से परेशान भारत ने चीन संग बढ़ाई दोस्ती। मोदी-जिनपिंग की डील से भारत को मिला अप्रत्याशित आर्थिक लाभ, जो बदलेगा एशिया का भाग्य। जानें पूरी रणनीति।

Aug 17, 2025 - 12:36
Aug 17, 2025 - 12:37
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भारत-चीन व्यापार: अमेरिका को झटका! मोदी-जिनपिंग डील से भारत को अप्रत्याशित लाभ?
भारत चीन व्यापार

ब्रेकिंग: अमेरिका को चौंकाया भारत ने! ट्रंप की चाल बनी अप्रत्याशित अवसर, चीन से ऐतिहासिक साझेदारी की ओर भारत

वाशिंगटन के रणनीतिकार हों या खुद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, किसी ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि भारत को आर्थिक रूप से घेरने की उनकी कोशिशें नई दिल्ली को बीजिंग के करीब ले आएंगी। गलवान संघर्ष के पांच साल बाद, एक ऐसी ऐतिहासिक मुलाकात होने जा रही है जो वैश्विक शक्ति संतुलन को हमेशा के लिए बदल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 31 अगस्त और 1 सितंबर को चीन यात्रा से दुनिया भर के देशों की नींद उड़ी हुई है। यह एक ऐसा घटनाक्रम है जिसने अनजाने में ही भारत के लिए आर्थिक उन्नति का एक ऐसा द्वार खोल दिया है, जिसकी खुद भारत ने भी उम्मीद नहीं की थी। अमेरिका के आर्थिक दबाव ने भारत को आत्मविश्वासी और शक्तिशाली बनकर उभरने का मौका दिया है, जो अब किसी के दबाव में झुकने को तैयार नहीं है।

ट्रंप का 'आर्थिक हमला' और भारत की नई राह

कहानी की शुरुआत 2018 के अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से होती है, जब अमेरिका ने बौद्धिक संपदा की चोरी का आरोप लगाते हुए चीनी सामानों पर भारी कर लगाया। 2025 में ट्रंप की सत्ता में वापसी के साथ, उन्होंने चीन पर अविश्वसनीय रूप से 143% का कर थोप दिया। उस समय भारत पर केवल 26% कर था, और सबको लगा कि भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में छा जाएंगे। लेकिन, यह खुशी सिर्फ छह हफ्ते ही टिक सकी। अमेरिका और चीन के बीच अचानक एक समझौता हुआ, जिससे चीनी सामानों पर अमेरिकी कर 30% और अमेरिकी सामानों पर चीनी कर 10% रह गया। इसके तुरंत बाद, अगस्त 2025 में, ट्रंप ने भारत पर कर लगभग दोगुना करके 50% कर दिया, जबकि बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका पर केवल 20% कर लगाया गया। यह भारत पर एक सीधा आर्थिक हमला था, जिसका मकसद अमेरिकी बाजार में भारतीय सामान को प्रतिस्पर्धा से बाहर करना था।

गलवान के बाद पहली मुलाकात: भारत-चीन संबंधों में नया मोड़

जब अमेरिका ने भारत के लिए दरवाजे बंद करने की कोशिश की, तो चीन ने भारत के लिए एक नई खिड़की खोल दी। चीन, जो खुद अमेरिकी व्यापार युद्ध से परेशान है, उसे एक नए, मजबूत और भरोसेमंद साझेदार की तलाश है। पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए: भारत के विदेश मंत्री शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक के लिए चीन पहुंचे, फिर अक्टूबर 2024 में कजान में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई, जिसके बाद सीमा पर तनाव कम करने के प्रयास तेज हुए। 23 जुलाई 2025 को चीन में स्थित भारतीय दूतावास ने चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा फिर से शुरू कर दिए। और अब, 31 अगस्त और 1 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा, जून 2020 की गलवान घाटी की झड़प के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली चीन यात्रा है। यह स्पष्ट संकेत है कि दोनों देश अतीत को पीछे छोड़कर भविष्य की ओर देख रहे हैं, एक ऐसा भविष्य जहां एशिया की दो सबसे बड़ी शक्तियां मिलकर एक नया इतिहास लिख सकती हैं।

व्यापार घाटा: एक बड़ी चुनौती और अवसर

इस बढ़ती दोस्ती की राह में एक बहुत बड़ा रोड़ा दोनों देशों के बीच का विशाल व्यापार घाटा है। डॉ. राजन सुदेश रत्ना, वरिष्ठ अर्थशास्त्री और यूनेस्को के उपमुख, के आंकड़ों के अनुसार, 2010 में भारत ने चीन को 1.74 अरब डॉलर का सामान बेचा, जो 2024 में घटकर 1.49 अरब डॉलर रह गया। वहीं, चीन ने 2010 में भारत को 50 अरब डॉलर का सामान बेचा, जो 2024 में तीन गुना बढ़कर 126 अरब डॉलर हो गया। इस घाटे का सीधा कारण यह है कि भारत चीन को ज्यादातर कच्चा माल (जैसे लौह अयस्क, कपास) और सस्ते उत्पाद बेचता है, जबकि चीन हमें महंगी और तैयार चीजें (जैसे मशीनें, इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल फोन) बेचता है। डॉ. राजन का मानना है कि भारत के पास चीन के साथ सीधी और स्पष्ट बातचीत करके इस घाटे को पाटने का सुनहरा मौका है।

भारत की 'दोहरी खेल कूटनीति': कैसे बदलेगी तस्वीर?

भारत इस बदली हुई परिस्थितियों को अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को सबसे बड़े अवसर में बदल सकता है। भारत चीन को यह प्रस्ताव दे सकता है कि अमेरिकी कर के कारण जिन देशों से उसका आयात प्रभावित हुआ है, उस कमी को भारत भर सकता है। अगर चीन भारत से अपनी कुछ जरूरतें पूरी करने के लिए राजी हो जाता है, तो भारत का निर्यात 50 से 100 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। इसे हकीकत में बदलने के लिए भारत को एक बहुआयामी रणनीति अपनानी होगी, जिसे 'दोहरी खेल कूटनीति' कहा जा सकता है। एक तरफ, हमें अमेरिका को यह संकेत देना होगा कि हम उसके दबाव में नहीं झुकेंगे और हमारे पास चीन के रूप में एक और विकल्प मौजूद है, जिससे अमेरिका के साथ बातचीत में हमारी सौदेबाजी की ताकत बढ़ेगी। दूसरी तरफ, हमें चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को नई परिभाषा देनी होगी। हमें सिर्फ कच्चा माल बेचने के बजाय मूल्यवर्धित और तैयार माल के निर्यात पर ध्यान देना होगा। इसके लिए प्रौद्योगिकी अदला-बदली एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है, जहां हम चीन से उन्नत मशीनरी लें और बदले में उन्हें भारत में बना तैयार माल वापस बेचें। इससे हमारा व्यापार घाटा भी कम होगा और देश में उत्पादन भी बढ़ेगा। इस मांग को पूरा करने के लिए भारत को अपनी फैक्ट्रियों में 24 घंटे, सातों दिन उत्पादन मॉडल अपनाना होगा। साथ ही, डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए भारत और चीन रुपया-युआन व्यापार समझौते की दिशा में भी आगे बढ़ सकते हैं, जो अमेरिकी वित्तीय दबाव को काफी हद तक कम कर देगा।

एक नए भारत का उदय: वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर

भारत और चीन की यह आर्थिक साझेदारी ब्रिक्स समूह को भी एक नई ताकत देगी, जो अमेरिकी प्रभुत्व के एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर सकता है। यह एक बेहद सधा हुआ और साहसिक खेल है, जहां भारत चीन के साथ व्यापार बढ़ाते हुए भी सीमा पर अपनी सैन्य सतर्कता बनाए रखेगा। यह एक ऐसे नए भारत की तस्वीर है जो अब किसी एक गुट में बंधा नहीं है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी शर्तों पर अपने रास्ते बना रहा है। क्या अमेरिका के कर ने अनजाने में भारत और चीन को करीब लाकर एक ऐतिहासिक गलती कर दी है? और क्या भारत की यह दोहरी खेल कूटनीति उसे एक वैश्विक महाशक्ति बनाने में सफल होगी? आपकी राय कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • FAQs
  • प्रश्न 1: अमेरिका ने भारत पर कितना आयात शुल्क लगाया? उत्तर: अगस्त 2025 में, अमेरिका ने भारत से आने वाले सामान पर कर को लगभग दोगुना करके 50% कर दिया। इसका उद्देश्य अमेरिकी बाजार में भारतीय सामान को महंगा करके उसे प्रतिस्पर्धा से बाहर करना था।
  • प्रश्न 2: भारत-चीन व्यापार घाटा कितना है और इसका कारण क्या है? उत्तर: 2024 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा काफी बढ़ गया है, जहाँ भारत ने चीन को $1.49 बिलियन का सामान बेचा जबकि चीन ने भारत को $126 बिलियन का सामान बेचा। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत चीन को कच्चा माल बेचता है जबकि चीन भारत को तैयार और मूल्यवर्धित उत्पाद बेचता है।
  • प्रश्न 3: प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा क्यों महत्वपूर्ण है? उत्तर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 31 अगस्त और 1 सितंबर की चीन यात्रा जून 2020 की गलवान घाटी की झड़प के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा है। यह यात्रा वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल सकती है और संकेत देती है कि दोनों देश भविष्य की ओर देख रहे हैं।
  • प्रश्न 4: 'दोहरी खेल कूटनीति' क्या है? उत्तर: 'दोहरी खेल कूटनीति' एक बहुआयामी रणनीति है जहाँ भारत एक तरफ अमेरिका को यह संकेत देता है कि वह दबाव में नहीं झुकेगा और उसके पास चीन का विकल्प है, वहीं दूसरी तरफ चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत करता है ताकि व्यापार घाटा कम हो और निर्यात बढ़े।
  • प्रश्न 5: भारत चीन से व्यापार बढ़ाकर अमेरिका को क्या संकेत देना चाहता है? उत्तर: भारत चीन से व्यापार बढ़ाकर अमेरिका को यह संकेत देना चाहता है कि वह उसके आर्थिक दबाव में झुकने वाला नहीं है और उसके पास अपने आर्थिक हितों की रक्षा के लिए अन्य विकल्प मौजूद हैं। इससे अमेरिका के साथ भारत की सौदेबाजी की ताकत बढ़ेगी।

Neeraj Ahlawat Neeraj Ahlawat is a seasoned News Editor from Panipat, Haryana, with over 10 years of experience in journalism. He is known for his deep understanding of both national and regional issues and is committed to delivering accurate and unbiased news.