मध्यपूर्व तनाव से तेल बाज़ार में उथल-पुथल: वैश्विक ध्रुवीकरण की नई चुनौती

रान-इजराइल तनाव से वैश्विक तेल आपूर्ति प्रभावित, विश्व अर्थव्यवस्था पर खतरे के बादल। जानिए कैसे बदल रही है शक्ति समीकरण की राजनीति।

Jun 21, 2025 - 18:35
 0  5
मध्यपूर्व तनाव से तेल बाज़ार में उथल-पुथल: वैश्विक ध्रुवीकरण की नई चुनौती
मध्यपूर्व तनाव से तेल बाज़ार में उथल-पुथल: वैश्विक ध्रुवीकरण की नई चुनौती

लेखक: नीरज कुमार | 21 जून, 2025

मध्यपूर्व में ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते सैन्य तनाव ने वैश्विक तेल बाज़ारों में अनिश्चितता की लहर पैदा कर दी है। हॉर्मुज जलडमरूमध्य से होने वाली तेल आपूर्ति पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल दर्ज की गई।

विश्लेषकों के अनुसार, इस संघर्ष ने न केवल ऊर्जा सुरक्षा को खतरे में डाला है बल्कि वैश्विक महाशक्तियों के बीच मौजूदा ध्रुवीकरण को और गहरा कर दिया है। अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा इजराइल को समर्थन देने के बाद रूस-चीन गठबंधन की ओर से ईरान को रणनीतिक बैकअप मिल रहा है।

तेल आपूर्ति श्रृंखला पर संकट

दुनिया के 30% समुद्री तेल परिवहन के लिए महत्वपूर्ण हॉर्मुज जलडमरूमध्य में जहाज़ों पर हमले बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मार्ग खतरे में पड़ गए हैं। भारत जैसे तेल आयातक देशों को आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान की आशंका से निपटने के लिए तत्काल योजनाएँ बनानी पड़ रही हैं।

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक महीने में कच्चे तेल की कीमतों में 18% की वृद्धि हुई है। इस उछाल का सीधा प्रभाव एशियाई देशों में पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों पर पड़ा है, जिससे मुद्रास्फीति के नए दबाव उत्पन्न हुए हैं।

राजनीतिक शक्ति समीकरण में बदलाव

इस संकट ने वैश्विक गठजोड़ों को पुनर्परिभाषित करना शुरू कर दिया है। पश्चिमी देशों द्वारा इजराइल को सैन्य सहायता देने के प्रत्युत्तर में ईरान ने रूस के साथ अपने रक्षा समझौते को विस्तारित किया है। चीन ने भी परोक्ष रूप से तेहरान का समर्थन करते हुए खाड़ी क्षेत्र में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाई है।

राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. अरुण वर्मा के मुताबिक, "यह संघर्ष केवल दो देशों का टकराव नहीं रहा, बल्कि यह नई विश्व व्यवस्था के निर्माण का संघर्ष बन गया है। जिन देशों ने पहले तटस्थता दिखाई थी, वे अब खुलकर अपनी भूमिका तय कर रहे हैं।"

भारत की कूटनीतिक चुनौतियाँ

इजराइल और ईरान दोनों के साथ रणनीतिक संबंध रखने वाले भारत के लिए यह स्थिति विशेष चुनौतीपूर्ण है। तेल आयात पर निर्भरता और खाड़ी क्षेत्र में 90 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा सरकार की प्रमुख चिंताएँ हैं।

विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत ने दोनों पक्षों के साथ कूटनीतिक संवाद तेज़ कर दिया है। साथ ही, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और तेल आपूर्ति मार्गों पर भी त्वरित निर्णय लिए जा रहे हैं ताकि घरेलू अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा जा सके।

अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि यदि तनाव और बढ़ा तो वैश्विक आर्थिक विकास दर में 0.8% तक की कमी आ सकती है। विकासशील देशों पर इसका सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाएँ ऊर्जा मूल्यों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।

वित्तीय बाज़ारों में भी अस्थिरता देखी जा रही है। तेल निर्यातक देशों के शेयर बाज़ारों में तेजी के बावजूद एशियाई बाज़ारों में मौजूदा सप्ताह में भारी गिरावट दर्ज की गई है। निवेशकों का रुझान सोना और डॉलर जैसे सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर बढ़ा है।

भविष्य की राह

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने तत्काल युद्धविराम और कूटनीतिक वार्ता की अपील की है। हालाँकि, दोनों पक्षों द्वारा सैन्य तैयारियाँ जारी रखने से शांति प्रयासों की संभावनाएँ धूमिल दिखाई देती हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें अब प्रमुख शक्तियों की अगली चाल पर टिकी हैं।

इस संकट ने एक बार फिर वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा की नाजुकता को उजागर किया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि देशों को अब नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर तेजी से बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसे भू-राजनीतिक झटकों से बचा जा सके।

Neeraj Ahlawat Neeraj Ahlawat is a seasoned News Editor from Panipat, Haryana, with over 10 years of experience in journalism. He is known for his deep understanding of both national and regional issues and is committed to delivering accurate and unbiased news.