भारत चीन संबंध: अमेरिका से दूर, चीन के करीब? जानिए कैसे

भारत और चीन के बढ़ते संबंध, क्या अमेरिका से दूरी बना रहा है भारत? जानें गलवान विवाद के बाद भी क्यों करीब आ रहे हैं दोनों देश और इसके मायने क्या हैं।

Aug 20, 2025 - 10:59
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भारत चीन संबंध: अमेरिका से दूर, चीन के करीब? जानिए कैसे
भारत-चीन संबंध

ताज़ा अपडेट: भारत की विदेश नीति में बड़ा बदलाव, क्या जापान की जगह अब चीन का रुख?

भारतीय विदेश नीति में इन दिनों एक बड़ा और हैरान कर देने वाला बदलाव देखने को मिल रहा है। 'जाते थे जापान, पहुंच गए चीन' यह फिल्मी गीत आज के भारत-चीन संबंधों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। ऐसा लग रहा है कि भारत, अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार अमेरिका से बढ़ती चुनौतियों के बीच, अब चीन की ओर देखने लगा है, जिसके साथ गलवान घाटी में पांच साल पहले खूनी झड़प हुई थी। हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के दिल्ली दौरे और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तथा विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से उनकी मुलाकात ने इन अटकलों को और तेज कर दिया है। डोभाल ने कहा है कि भारत और चीन के ताल्लुक सुधर रहे हैं, वहीं वांग यी ने भी दोनों देशों के मूलभूत और दीर्घकालिक हितों के लिए स्थिर संबंधों को आवश्यक बताया है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि भारत की सामरिक स्वायत्तता और विदेश नीति किस दिशा में आगे बढ़ रही है।

अमेरिका से दूरी, चीन से नज़दीकी: क्या है नया रुख? भारत का अमेरिका सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आने वाले सामान पर 25% टैरिफ लगाया है, जिसमें 27 अगस्त से 25% पेनल्टी और जुड़ने वाली है। अमेरिका से एक प्रतिनिधिमंडल के आने की उम्मीद थी, लेकिन अब यह दौरा ही रद्द हो गया है। पीटर नबो जैसे ट्रंप के करीबी सलाहकार लगातार भारत की तेल लॉबी को पुतिन की फंडिंग से जोड़ रहे हैं और वॉशिंगटन-इस्लामाबाद की बढ़ती नजदीकी की खबरें भी आ रही हैं। इन परिस्थितियों में, भारत ने एक "अजीब समाधान" निकाला है, जो राजनयिक दुनिया में सभी को हैरान कर रहा है: अमेरिका की जगह चीन की ओर देखना।

गलवान के बाद भी क्यों बढ़ रहे संबंध? 2020 में गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुई झड़प में कर्नल संतोष बाबू और उनके 19 जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इस घटना के बाद, भारत ने चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए और चीनी कंपनियों को ठेके देने से मना कर दिया। हालांकि, तब भारत ने अमेरिका से लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) के तहत सैन्य सहायता ली थी, जैसे कि ठंडे मौसम के लिए जैकेट। अब, गलवान के बाद भी दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की बात हो रही है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी अपनी टीम के साथ भारत आए और एनएसए अजीत डोभाल से मुलाकात की, जो सीमा विवाद पर स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव्स के बीच 24वें दौर की बातचीत थी। अक्टूबर 2024 में रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से ठीक पहले पूर्वी लद्दाख में पेट्रोलिंग को लेकर एक समझौता भी हुआ था। चीन हमेशा से सीमा विवाद और व्यापार को अलग-अलग मानता रहा है, जबकि भारत का रुख पहले इसके विपरीत था।

डोभाल-वांग यी मुलाकात: भरोसे और सत्यापन की चुनौती अजीत डोभाल और वांग यी की मुलाकात महत्वपूर्ण रही, लेकिन चीन की ओर से जारी रीडआउट में दावा किया गया कि डोभाल ने 'वन चाइना पॉलिसी' को स्वीकार किया, जबकि भारत की क्षेत्रीय अखंडता को लेकर वांग यी से ऐसा कोई बयान देखने को नहीं मिला। इतना ही नहीं, वांग यी 21 अगस्त को पाकिस्तान भी जा रहे हैं, जो 'हाइफनेशन' से भारत के परहेज के खिलाफ है। इन बैठकों का निचोड़ यही है कि भारत अब गलवान से आगे देखना चाहता है, एक ऐसा लक्ष्य जिसका हर कोई स्वागत करेगा। हालांकि, चीन पर "भरोसा करो, लेकिन सत्यापन भी करो" (Trust but verify) का सिद्धांत अभी भी प्रासंगिक है।

आर्थिक मोर्चे पर चीन की ओर झुकाव? ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कंपनियां ट्रंप के टैरिफ का तोड़ निकालने के लिए लगातार चीनी कंपनियों से समझौते कर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का प्रयास कर रही हैं। भारत में चीन के राजदूत जू फीहोंग ने तो ट्रंप के टैरिफ को "बुली" की तरह बताया और कहा कि यह संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन है। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते महीने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और वांग यी के बीच चीनी चुंबक, दुर्लभ पृथ्वी खनिज, टनल बोरिंग मशीन और उर्वरक की आपूर्ति बहाल करने पर भी बात हुई थी, जिस पर वांग यी ने भरोसा भी दिलाया था। यह सवाल उठता है कि क्या भारत यह स्वीकार कर रहा है कि वह चीन की मैन्युफैक्चरिंग का मुकाबला नहीं कर सकता? क्या चीन ने भारत का भरोसा जीतने के लिए कुछ किया है?

क्या अमेरिका से 'दादा' से बचने को दूसरे 'दादा' के पास? यह सही है कि ट्रंप जैसे नेताओं से निपटना मुश्किल है, जैसा कि पाकिस्तान, चीन, पुतिन और जेलेंस्की जैसे देशों ने अलग-अलग तरीकों से किया है। पाकिस्तान ने घूस और लॉबिंग का सहारा लिया, चीन ने 'जैसे को तैसा' का जवाब दिया और दुर्लभ धातुओं की आपूर्ति काट दी, जबकि पुतिन ने आक्रामक-निष्क्रिय रवैया अपनाया। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी अपने पहनावे और व्यवहार में बदलाव करके ट्रंप से बेहतर डील की। लेकिन भारत इस मोर्चे पर पिछड़ता दिख रहा है। एक 'बुली' से बचने के लिए दूसरे 'बुली' के पास जाना हमेशा घातक हो सकता है। चीन भी भारत की ओर देख रहा है क्योंकि वह अमेरिका की जगह नए बाजार तलाश रहा है।

निष्कर्ष: भारत की विदेश नीति का नया अध्याय आज भारत की विदेश नीति एक चौराहे पर खड़ी है। गलवान के बाद की स्थिति से आगे बढ़ने की इच्छा सराहनीय है। लेकिन क्या यह वास्तविक प्रगति है या तात्कालिक दबाव का परिणाम? भारत को यह याद रखना होगा कि फिल्मी दुनिया में 'जाते थे जापान पहुंच गए चीन' ठीक है, लेकिन असल जिंदगी में ऐसे बदलावों पर रुककर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि क्या आप वाकई वही कर रहे हैं, जिसके लिए घर से निकले थे। चीन को कोई खुलकर दुश्मन नहीं कहता, लेकिन 'भरोसा करो, लेकिन सत्यापन भी करो' का सिद्धांत हमेशा लागू होता है।

FAQs:

    • प्रश्न 1: भारत और चीन के बीच हाल ही में क्या बातचीत हुई? उत्तर: चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने हाल ही में भारत का दौरा किया और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल तथा विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की। इन वार्ताओं में भारत-चीन संबंधों में सुधार और पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद पर चर्चा हुई।

    • प्रश्न 2: अमेरिका से भारत के संबंध क्यों बिगड़ रहे हैं? उत्तर: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा भारत से आयात पर 25% टैरिफ और अतिरिक्त पेनल्टी लगाने के कारण अमेरिका से भारत के व्यापारिक संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं। इसके अलावा, अमेरिकी दल का भारत दौरा रद्द होना भी चिंता का विषय है।

    • प्रश्न 3: गलवान घाटी विवाद के बाद भी भारत चीन के करीब क्यों आ रहा है? उत्तर: गलवान विवाद के बाद भी भारत का चीन की ओर झुकाव अमेरिका से बढ़ती चुनौतियों का परिणाम प्रतीत होता है। भारत अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, और आर्थिक मोर्चे पर ट्रंप के टैरिफ का मुकाबला करने के लिए चीन से सहयोग तलाश रहा है।

    • प्रश्न 4: क्या भारत ने 'वन चाइना पॉलिसी' को फिर से स्वीकार किया है? उत्तर: चीन के रीडआउट के अनुसार, अजीत डोभाल ने वांग यी से मुलाकात में 'वन चाइना पॉलिसी' को स्वीकार किया है। हालांकि, इस पर भारत की ओर से कोई स्पष्ट आधिकारिक बयान नहीं आया है, और चीन ने भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर कोई समान टिप्पणी नहीं की।

    • प्रश्न 5: भारत की विदेश नीति में इस बदलाव के क्या मायने हैं? उत्तर: भारत की विदेश नीति में यह बदलाव एक रणनीतिक मोड़ को दर्शाता है, जहां भारत अपने हितों की रक्षा के लिए नए साझेदार तलाश रहा है। यह भारत को एक ओर चीन के साथ संबंधों को संतुलित करने की चुनौती देता है, वहीं दूसरी ओर अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने का प्रयास भी है।

Neeraj Ahlawat Neeraj Ahlawat is a seasoned News Editor from Panipat, Haryana, with over 10 years of experience in journalism. He is known for his deep understanding of both national and regional issues and is committed to delivering accurate and unbiased news.