अक्साई चिन विवाद: चीन का 'दोहरा रवैया' उजागर, भारत का दावा कितना मजबूत?

अक्साई चिन पर भारत के मजबूत ऐतिहासिक दावे को जानें, जो 1842 की चुशुल संधि से पुष्ट होता है। चीन ने खुद इस पर हस्ताक्षर किए थे, फिर भी विवाद जारी क्यों है?

Aug 21, 2025 - 11:28
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अक्साई चिन विवाद: चीन का 'दोहरा रवैया' उजागर, भारत का दावा कितना मजबूत?
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Breaking News: अक्साई चिन को लेकर भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद एक नया मोड़ लेता दिख रहा है। भारतीय पक्ष लगातार 1842 की ऐतिहासिक चुशुल संधि का हवाला दे रहा है, जो अक्साई चिन पर भारत के दावे को अभूतपूर्व मजबूती देती है। सबसे बड़ा खुलासा यह है कि इस संधि पर तत्कालीन चीनी सम्राट ने स्वयं हस्ताक्षर किए थे, जिसका सीधा अर्थ है कि चीन ने आधिकारिक तौर पर अक्साई चिन को लद्दाख का हिस्सा स्वीकार किया था। आइए, इस पूरे ऐतिहासिक घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि आखिर चीन अपने ही हस्ताक्षरों से क्यों मुकर रहा है।

1. तिब्बती साम्राज्य से लद्दाख का उदय: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

इतिहास के पन्नों को पलटें तो 625 ईस्वी के आसपास भारत में विभिन्न साम्राज्य थे, और उनके बगल में एक विशाल तिब्बती साम्राज्य फैला हुआ था, जिसमें वर्तमान लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश का कुछ हिस्सा भी शामिल था। वर्ष 1842 में तिब्बती सम्राट लैंगडर्मा की मृत्यु के बाद, उनके वारिसों में सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया। इस पारिवारिक कलह से परेशान होकर, लैंगडर्मा के प्रपौत्र नीमा गों ने तिब्बती साम्राज्य के पश्चिमी, विरान हिस्से को लेकर 'नगारी साम्राज्य' की स्थापना की। यह क्षेत्र, जो आज भारत-चीन का विवादित पश्चिमी क्षेत्र है, तब इसी नगारी साम्राज्य में आता था। नीमा गों की मृत्यु के बाद, उनके बेटे लाचेन ने नगारी साम्राज्य का विस्तार किया और इसे 'मर्यूल साम्राज्य' नाम दिया, जिसे 1460 ईस्वी तक 'लद्दाख साम्राज्य' के नाम से जाना जाने लगा। बाद में, नामग्याल वंश ने लद्दाख पर शासन किया और इस क्षेत्र में अपना प्रभाव तेजी से बढ़ाया।

2. 1684 की टिंगमोसगंग संधि: पहली लिखित सीमा का निर्धारण

लद्दाख के बढ़ते प्रभाव को तिब्बती साम्राज्य ने अपने लिए खतरा माना और पांचवें दलाई लामा के अधीन लद्दाख पर हमला कर दिया। तिब्बती साम्राज्य काफी मजबूत था और इस लड़ाई में लद्दाख को काफी क्षेत्र गंवाना पड़ा। तब लद्दाख ने भारत में मुगल साम्राज्य से मदद मांगी, जिसके बाद यह लड़ाई रुकी। वर्ष 1684 में तिब्बत और लद्दाख के बीच 'टिंगमोसगंग की संधि' पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि का मुख्य बिंदु यह था कि इसने पहली बार इस क्षेत्र में कागज़ पर तिब्बत और लद्दाख के बीच एक सीमा निर्धारित की थी, ताकि भविष्य में संघर्ष न हो। भारत-चीन सीमा विवादों में अक्सर इस संधि का उल्लेख होता है, क्योंकि यहीं से इस सीमा की औपचारिक शुरुआत हुई थी।

3. चीन का तिब्बत पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण और डोगरा साम्राज्य का विस्तार

1720 ईस्वी में, चीन के किंग साम्राज्य ने सीधे हमला करने के बजाय अपनी सेना तिब्बती साम्राज्य में भेजी। उन्होंने तिब्बती शासक डज़ुंग को हटाकर सातवें दलाई लामा कलसांग को गद्दी पर बैठाया, और इस प्रकार चीन का किंग साम्राज्य तिब्बत को अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करने लगा। तिब्बत चीन के अधीन आ गया और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी चीन के किंग साम्राज्य की हो गई। इसी बीच, 1819 में सिख साम्राज्य ने डोगरा साम्राज्य (वर्तमान जम्मू-कश्मीर) पर हमला कर उसे अपने अधीन कर लिया। महाराजा गुलाब सिंह डोगरा साम्राज्य के शासक बने रहे, लेकिन अब यह सिख साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद डोगरा और सिख साम्राज्य ने लद्दाख पर भी हमला कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया।

4. चुशुल संधि (1842): जब चीन ने खुद स्वीकारा अक्साई चिन लद्दाख का हिस्सा

तिब्बती साम्राज्य दो भागों में बंट गया था: पश्चिमी भाग लद्दाख बना, जो सिख-डोगरा साम्राज्य के पास चला गया, और बाकी बचा हुआ तिब्बती साम्राज्य चीन द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से शासित था। 1842 में, डोगरा और सिख साम्राज्य ने, जिन्होंने पहले से ही लद्दाख पर कब्जा कर रखा था, व्यापार मार्गों पर नियंत्रण के लिए लद्दाख के क्षेत्र का विस्तार करना शुरू किया। इससे तिब्बत के साथ युद्ध छिड़ गया, जिसमें चीन भी परोक्ष रूप से शामिल था। काफी नुकसान और लंबी लड़ाई के बाद, 17 सितंबर 1842 को तिब्बत और डोगरा-सिख साम्राज्य के बीच 'चुशुल की संधि' पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि में चीन भी एक पक्ष था। इसके हस्ताक्षरकर्ताओं में महाराजा गुलाब सिंह, चीन के सम्राट और तिब्बत की ओर से ल्हासा के लामा गुरु शामिल थे।

इस संधि में व्यापार और आवागमन जैसी कई बातें थीं, लेकिन इसका सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि इसमें लद्दाख और तिब्बत की सीमाओं का सीमांकन किया गया। इसमें यह तय किया गया कि लद्दाख और तिब्बत अपनी "पुरानी स्थापित सीमाओं" पर वापस चले जाएंगे, जो पहले वाली टिंगमोसगंग संधि में तय की गई थीं। "पुरानी स्थापित सीमाएँ" का अर्थ उस समय देशों के बीच छोड़े गए व्यापक क्षेत्र थे, न कि आधुनिक सटीक सीमाएँ। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया था कि अक्साई चिन लद्दाख का हिस्सा है, न कि चीन या तिब्बत का

5. अक्साई चिन पर भारत का मजबूत दावा और चीन का रुख

यही कारण है कि आज तक भारत-चीन सीमा विवादों में 'चुशुल की संधि' का नाम बार-बार आता है। भारत इस संधि का हवाला देकर अक्साई चिन पर अपना दावा और मजबूत करता है, क्योंकि चीन ने खुद इस पर हस्ताक्षर किए थे कि अक्साई चिन लद्दाख का हिस्सा है। यह संधि इस बात का भी प्रमाण है कि लद्दाख उस समय डोगरा शासकों के नियंत्रण में था, जो आज के भारत का हिस्सा है। उस समय की कुछ मूल मुहरें, जिन पर तिब्बत का उल्लेख है, अभी भी उपलब्ध हैं, जो इस बात की पुष्टि करती हैं। इसके बावजूद, चीन अपने ही ऐतिहासिक हस्ताक्षरों से मुकर रहा है, जिससे अक्साई चिन विवाद और गहरा रहा है।


FAQs

प्र1: चुशुल संधि क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है? उ: चुशुल संधि 17 सितंबर 1842 को तिब्बत और डोगरा-सिख साम्राज्य के बीच हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक समझौता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें लद्दाख और तिब्बत की सीमाओं का सीमांकन किया गया था, और चीन भी इसमें एक हस्ताक्षरकर्ता पक्ष था।

प्र2: अक्साई चिन को लेकर चीन का क्या रुख है? उ: चीन वर्तमान में अक्साई चिन पर अपना दावा करता है, लेकिन 1842 की चुशुल संधि में उसने आधिकारिक तौर पर इसे लद्दाख का हिस्सा स्वीकार किया था। भारत इसी संधि के आधार पर अक्साई चिन पर अपना मजबूत दावा प्रस्तुत करता है।

प्र3: टिंगमोसगंग की संधि का क्या महत्व है? उ: 1684 में तिब्बत और लद्दाख के बीच हुई टिंगमोसगंग की संधि इस क्षेत्र में कागज़ पर पहली बार सीमा निर्धारित करने वाली संधि थी। इसने लद्दाख और तिब्बत के बीच एक सीमा तय की और इसे अक्सर भारत-चीन सीमा विवादों में उद्धृत किया जाता है।

प्र4: लद्दाख का तिब्बती साम्राज्य से अलगाव कैसे हुआ? उ: तिब्बती सम्राट लैंगडर्मा की मृत्यु के बाद उनके प्रपौत्र नीमा गों ने तिब्बती साम्राज्य के पश्चिमी भाग को लेकर नगारी साम्राज्य की स्थापना की, जो बाद में लद्दाख साम्राज्य बना। यह क्षेत्र वर्तमान भारत-चीन विवादित पश्चिमी क्षेत्र में आता है।

प्र5: भारत का अक्साई चिन पर दावा कितना मजबूत है? उ: भारत का अक्साई चिन पर दावा अत्यंत मजबूत है, जिसका मुख्य आधार 1842 की चुशुल संधि है। इस संधि पर चीन ने स्वयं हस्ताक्षर किए थे, जिसमें उसने अक्साई चिन को लद्दाख का हिस्सा माना था।


Neeraj Ahlawat Neeraj Ahlawat is a seasoned News Editor from Panipat, Haryana, with over 10 years of experience in journalism. He is known for his deep understanding of both national and regional issues and is committed to delivering accurate and unbiased news.