ब्लड मून का अद्भुत नजारा: 82 मिनट तक क्यों लाल दिखा चांद? वैज्ञानिक रहस्य और ज्योतिषीय महत्व
भारत में दिखा ब्लड मून का शानदार नजारा। 7 सितंबर को 82 मिनट तक लाल रहे चांद के वैज्ञानिक कारण, समय, स्थान और ज्योतिषीय प्रभावों की पूरी जानकारी।

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 08 Sep 2025
ब्लड मून का अद्भुत नजारा: भारत में दिखा 82 मिनट का लाल चांद, जानें वैज्ञानिक रहस्य और इसके पीछे की दिलचस्प बातें
हाल ही में 7 सितंबर की रात भारत के आसमान में एक अद्भुत नजारा देखने को मिला, जब पूर्ण चंद्र ग्रहण ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। चंद्रमा ने अपने सामान्य स्वरूप को छोड़कर लाल रंग में चमकना शुरू कर दिया, जिसने सभी को अचंभित कर दिया। यह खगोलीय घटना, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ब्लड मून कहा जाता है, रात 9:58 पर शुरू हुई और इसका पूर्ण चरण रात 11:01 से 12:23 तक चला। इस दौरान, करीब 82 मिनट तक चांद पूरी तरह से पृथ्वी की छाया में डूबा रहा और गहरे लाल रंग में चमकता नजर आया। देश भर के लाखों लोगों ने इस दुर्लभ खगोलीय घटना का बेसब्री से इंतजार किया और आसमान की ओर टकटकी लगाए रखी। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु और नैनीताल जैसे बड़े शहरों में यह नजारा बेहद साफ दिखाई दिया, और मौसम भी साफ रहा, जिससे आम लोगों ने बिना किसी दूरबीन या विशेष उपकरण के इसे अपनी आंखों से ही देखा और इसका आनंद लिया। यह घटना केवल एक वैज्ञानिक महत्व नहीं रखती, बल्कि इसने प्राकृतिक सौंदर्य का एक अविस्मरणीय अनुभव भी प्रदान किया, जब पूरा चांद एक चित्रकार की अनोखी कृति की तरह गहरे लाल रंग में बदल गया। यह ब्लड मून हमें प्रकृति की सुंदरता और रहस्यमयता की याद दिलाता है और एक ऐसा अनुभव है जिसे लोग लंबे समय तक याद रखेंगे, क्योंकि ऐसा मनमोहक नजारा बार-बार देखने को नहीं मिलता। धीरे-धीरे जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया से बाहर आने लगा, तो इसका आंशिक चरण रात 1:26 पर खत्म होना शुरू हुआ और सुबह 2:25 तक यह पूरी तरीके से समाप्त हो गया। पूरी रात लोग चांद को उसके अलग-अलग रूप और रंगों में निहारते रहे।
क्या है ब्लड मून? वैज्ञानिक कारण और प्रक्रिया
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ब्लड मून कोई रहस्यमयी घटना नहीं, बल्कि एक पूर्णतः वैज्ञानिक प्रक्रिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के ठीक बीच आ जाती है। इस स्थिति में, सूर्य की सीधी रोशनी चांद तक नहीं पहुंच पाती। हालांकि, सूर्य की कुछ किरणें पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरती हैं। पृथ्वी का वायुमंडल नीली रोशनी को बिखेर देता है, जबकि लाल और नारंगी किरणें वायुमंडल से होकर गुजरकर चंद्रमा तक पहुंच पाती हैं। यही कारण है कि चंद्रमा इस दौरान लाल या नारंगी रंग का दिखाई देने लगता है, जिसे ब्लड मून कहा जाता है। यह ठीक वैसी ही प्रक्रिया है जिसकी वजह से हमें सूर्योदय और सूर्यास्त के समय आकाश लाल और नारंगी दिखाई देता है। चंद्र ग्रहण वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद खास होता है, क्योंकि यह पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षा, उसकी गति और उनके बीच की दूरी जैसी कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करता है। पृथ्वी की छाया दो भागों में बंटी होती है, और जब चंद्रमा इस भीतरी गहरे हिस्से (अम्ब्रा) में प्रवेश करता है, तभी पूर्ण चंद्र ग्रहण या ब्लड मून का नजारा देखने को मिलता है। विज्ञान ने स्पष्ट कर दिया है कि यह एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है, जिसका संबंध किसी अंधविश्वास से नहीं है।
भारत समेत दुनिया भर में ब्लड मून का सांस्कृतिक और ज्योतिषीय महत्व
भले ही विज्ञान ने चंद्र ग्रहण को एक प्राकृतिक घटना घोषित कर दिया हो, लेकिन भारत समेत दुनिया के कई देशों में इसे आज भी रहस्यमयी और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद खास माना जाता है। प्राचीन समय में लोग इसे शुभ-अशुभ घटनाओं से जोड़ते थे और मानते थे कि ग्रहण का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आज भी बहुत से लोग चंद्र ग्रहण के दौरान खाना-पीना या खाने से परहेज करते हैं, यह मानते हुए कि इसका उनके स्वास्थ्य या जीवन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। हालांकि, वैज्ञानिकों का स्पष्ट कहना है कि चंद्र ग्रहण का स्वास्थ्य या जीवन पर कोई असर नहीं होता। यह केवल एक खगोलीय घटना है जो हमें ब्रह्मांड की विशालता और उसकी प्रक्रियाओं को समझने का अवसर देती है। ज्योतिष और धर्म से जुड़े विषयों में ग्रहण को लेकर अलग-अलग मान्यताएं और उपाय बताए जाते हैं, जो लोगों की आस्था का हिस्सा हैं। प्रकृति की यह अनोखी घटना हमें न केवल ब्रह्मांड के रहस्यों से परिचित कराती है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों और उनकी परंपराओं को समझने का भी एक अनूठा अवसर देती है।
ब्लड मून का समय और यह नजारा कहां-कहां दिखा
7 सितंबर की रात को लगे इस पूर्ण चंद्र ग्रहण ने पूरे भारत में लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जैसा कि बताया गया है, ग्रहण का पूरा क्रम रात 9:58 पर शुरू हुआ। इसके बाद, ब्लड मून का पूर्ण चरण रात 11:01 से शुरू होकर मध्यरात्रि 12:23 तक चला, यानी चंद्रमा लगभग 82 मिनट तक पूरी तरह से पृथ्वी की छाया में डूबा रहा और लाल रंग में चमकता रहा। इसके बाद, आंशिक चरण रात 1:26 पर खत्म होना शुरू हुआ और सुबह 2:25 मिनट तक यह खगोलीय घटना पूरी तरह से समाप्त हो गई। यह ब्लड मून भारत के कई बड़े शहरों में आसानी से देखा जा सका। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु और नैनीताल जैसे शहरों में लोगों ने इस शानदार नजारे का दीदार किया। साफ मौसम ने इस दृश्य को और भी अविस्मरणीय बना दिया, जिससे आम लोग भी बिना किसी विशेष उपकरण के इसे अपनी आंखों से देख पाए और प्रकृति के इस अद्भुत रूप का अनुभव कर पाए। यह घटना न केवल वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण थी बल्कि उन लाखों लोगों के लिए भी एक यादगार अनुभव रही जिन्होंने इस दुर्लभ ब्लड मून को अपनी आंखों से देखा।
भविष्य के खगोलीय अनुभवों के लिए बने रहें तैयार
यह ब्लड मून घटना एक बार फिर इस बात का प्रमाण है कि हमारा ब्रह्मांड अनगिनत रहस्यों और अद्भुत दृश्यों से भरा पड़ा है। इस तरह की खगोलीय घटनाएं हमें प्रकृति की शक्ति और उसकी सुंदरता का अहसास कराती हैं। वैज्ञानिक लगातार इन घटनाओं का अध्ययन करते रहते हैं ताकि हमें पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी, उनकी गति और सौर मंडल के अन्य पहलुओं के बारे में अधिक जानकारी मिल सके। जहां विज्ञान इन घटनाओं को प्राकृतिक प्रक्रियाओं के रूप में देखता है, वहीं सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी इनका गहरा महत्व होता है, जो मानवीय जिज्ञासा और आस्था का प्रतीक है। इस ब्लड मून ने लोगों को याद दिलाया कि आसमान में ऐसे मनमोहक नजारे बार-बार देखने को नहीं मिलते, इसलिए जब भी ऐसा अवसर मिले, उसका भरपूर आनंद लेना चाहिए। भविष्य में भी ऐसी कई खगोलीय घटनाएं होंगी जो हमें ब्रह्मांड की विशालता और सुंदरता से रूबरू कराएंगी। हमें इन अनुभवों के लिए तैयार रहना चाहिए और प्रकृति के इन उपहारों का सम्मान करना चाहिए।