चंडीगढ़ की प्लानिंग: भारत का बेजोड़ शहर! जानिए कैसे

: चंडीगढ़ की अद्भुत प्लानिंग ने इसे बनाया भारत का सबसे सुनियोजित और रहने लायक शहर। जानें ट्रैफिक, प्रदूषण और हरियाली में कैसे यह बाकी शहरों से बेहतर है और इसकी अनूठी कहानी।

Aug 21, 2025 - 11:39
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चंडीगढ़ की प्लानिंग: भारत का बेजोड़ शहर! जानिए कैसे
चंडीगढ़ की सुनियोजित शहरी प्लानिंग

चंडीगढ़ की प्लानिंग: भारत का बेजोड़ शहर! जानिए कैसे बना यह सपना हकीकत

क्या आप जानते हैं कि भारत के बड़े शहरों दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में जहां ट्रैफिक जाम और प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, वहीं एक ऐसा शहर भी है जो इन सब चुनौतियों से मुक्त है? हम बात कर रहे हैं चंडीगढ़ की, जिसे भारत का सबसे सुनियोजित और रहने लायक शहर माना जाता है। यह शहर आज भी अपनी शानदार प्लानिंग, स्वच्छ हवा और हरे-भरे वातावरण के लिए जाना जाता है। आइए जानते हैं कैसे इस शहर की परिकल्पना की गई और किन सिद्धांतों पर इसे बनाया गया, जो आज भी इसे बेमिसाल बनाए हुए हैं।

आजादी के बाद पंजाब की राजधानी की तलाश

साल 1947 में भारत को आजादी तो मिली, लेकिन विभाजन का सबसे बड़ा असर पंजाब ने झेला, क्योंकि उसकी राजधानी लाहौर पाकिस्तान का हिस्सा बन गई। भारत सरकार के सामने अब एक बड़ा सवाल था: पंजाब की नई राजधानी क्या होगी? 1948 में चीफ इंजीनियर परमेश्वरी लाल वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी, जिसने अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, अंबाला, करनाल और शिमला जैसे कई विकल्पों पर विचार किया, लेकिन कोई भी शहर आवश्यक मानदंडों को पूरा नहीं कर पाया। पंजाब को एक बिल्कुल नई राजधानी की आवश्यकता थी, जो सिर्फ एक प्रशासनिक केंद्र ही नहीं, बल्कि नए भारत की पहचान भी बन सके।

मार्च 1948 में पंजाब और भारत सरकार के बीच चर्चा हुई और अंबाला जिले में शिवालिक पहाड़ियों के पास 144.59 वर्ग किलोमीटर भूमि को राजधानी के लिए मंजूरी दी गई। यह स्थान चंडी देवी के नाम पर 'चंडीगढ़' कहलाया। इस जगह की खासियत थी कि यह पंजाब प्रांत में केंद्रीय रूप से स्थित थी, दिल्ली के करीब थी, ताजे पानी तक पहुंच थी, और आसपास उपजाऊ भूमि भी उपलब्ध थी जो भविष्य में आबादी को बनाए रख सकती थी और हरियाली विकसित करना आसान बनाती थी। साथ ही, यहां की जमीन स्वाभाविक रूप से ढलान वाली थी, जिससे प्राकृतिक जल निकासी थी और बाढ़ की संभावना न के बराबर थी।

चंडीगढ़ का अनूठा डिजाइन: एक जीवित शरीर की तरह

1949 में इस सपनों के शहर को साकार करने के लिए एक योजना टीम तैयार की गई, जिसमें अमेरिकी वास्तुकार अल्बर्ट मेयर और पोलैंड के मैथ्यू नोविकि शामिल थे। हालांकि, 1950 में नोविकि की दुखद मृत्यु के बाद मेयर भी इस परियोजना से अलग हो गए। इसके बाद, 1951 में भारत सरकार की तलाश स्विट्जरलैंड के ली कॉर्ब्यूजियर पर खत्म हुई, जिन्हें आधुनिक वास्तुकला का जनक माना जाता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इस परियोजना में बहुत रुचि रखते थे और उन्होंने 2 अप्रैल 1952 को इस शहर को "भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक, अतीत की परंपराओं से मुक्त एक नया शहर" कहा।

ली कॉर्ब्यूजियर ने चंडीगढ़ को डिजाइन करते समय इसे कंक्रीट के ब्लॉक की तरह नहीं, बल्कि एक जीवित प्राणी की तरह देखा। उनका मानना था कि एक शहर इंसान की तरह जीता, सोचता और विकसित होता है। इसी सोच के साथ उन्होंने चंडीगढ़ को एक मानव शरीर के रूप में डिजाइन किया। शहर का 'मस्तिष्क' कैपिटल कॉम्प्लेक्स था, जिसमें विधानसभा, हाई कोर्ट और सचिवालय शामिल थे, जहां सभी महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते थे। शहर का 'हृदय' सेक्टर 17 था, जिसे केंद्रीय व्यापारिक जिले और व्यावसायिक केंद्र के रूप में विकसित किया गया, जिसमें सिनेमा हॉल, शॉपिंग आर्केड और कैफे शामिल थे। 'फेफड़े' शहर के हरे-भरे क्षेत्र थे - पार्क, उद्यान और ग्रीन बेल्ट, जो हर सेक्टर के बीच में शामिल किए गए, जिससे आज भी चंडीगढ़ का 50% से अधिक क्षेत्र हरियाली से ढका है। शहर के 'अंग' औद्योगिक और शैक्षिक क्षेत्र थे, जिन्हें आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्रों से अलग रखा गया ताकि प्रदूषण और भीड़ दैनिक जीवन को बाधित न करें।

सड़कें, दिल और फेफड़े: वी1 से वी7 सिस्टम

ली कॉर्ब्यूजियर ने चंडीगढ़ की सड़कों को मानव शरीर की रक्त वाहिकाओं की तरह डिज़ाइन किया, जिसे सात-स्तरीय सड़क पदानुक्रम, वी1 से वी7 में वर्गीकृत किया गया। यह प्रणाली बेहद अनूठी है:

  • वी1 रोड्स: ये शहर को बाहर के कस्बों से जोड़ती हैं, जैसे अंबाला और मोहाली, और इनमें दोहरी कैरिजवे होती हैं।
  • वी2 रोड्स: ये शहर के भीतर की मुख्य धमनी सड़कें हैं, जिन्हें 'मार्ग' कहा जाता है, जैसे मध्य मार्ग और दक्षिण मार्ग।
  • वी3 रोड्स: ये वी2 सड़कों को सेक्टरों से जोड़ती हैं और प्रत्येक सेक्टर की सीमा बनाती हैं।
  • वी4 रोड्स: ये प्रत्येक सेक्टर के अंदर से गुजरती हैं, जहां स्थानीय बाजार और दैनिक सेवाएं मिलती हैं। ये पूर्व से पश्चिम दिशा में चलती हैं और दुकानों का मुख हमेशा दक्षिण की ओर होता है ताकि दिनभर छाया रहे।
  • वी5 रोड्स: ये प्रत्येक सेक्टर के भीतर स्थानीय यातायात के लिए घुमावदार सड़कें होती हैं, जो गति को धीमा रखती हैं और सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।
  • वी6 रोड्स: ये सबसे छोटी सड़कें होती हैं, जो सीधे घरों तक पहुंच प्रदान करती हैं।
  • वी7 रोड्स: ये पैदल चलने वालों के लिए विशेष रास्ते और साइकिल ट्रैक थे, जो हरे-भरे क्षेत्रों से होकर गुजरते हैं, जिससे बिना ट्रैफिक के सुरक्षित आवागमन संभव होता है।

इस व्यापक सड़क प्रणाली का लक्ष्य था कि वाहन और पैदल यात्री दोनों को सुरक्षित और सुगम अनुभव मिले। यही कारण है कि चंडीगढ़ में आज भी ट्रैफिक जाम कम होता है और शहर व्यवस्थित और हवादार महसूस होता है। दिलचस्प बात यह है कि 70 साल बाद भी चंडीगढ़ में एक भी फ्लाईओवर नहीं है, क्योंकि यहां की आबादी शहर की सुंदरता को खराब करने के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करती है।

जलवायु-अनुकूल वास्तुकला और ठोस सच्चाई

1950 के दशक में, जब चंडीगढ़ बन रहा था, एयर कंडीशनिंग का इतना प्रचलन नहीं था। इसलिए, इमारतों में विशेष तत्व शामिल किए गए। हाई कोर्ट और सचिवालय जैसी प्रमुख इमारतों के बाहर 'ब्रिस सोलेल' नामक कंक्रीट की परतें हैं। ये सूर्य-रक्षक के रूप में कार्य करती हैं, जो गर्मियों में तेज धूप को रोककर केवल विसरित धूप को अंदर आने देती हैं, जिससे आंतरिक तापमान लगभग 5° सेल्सियस कम हो जाता है। सर्दियों में, जब सूर्य का कोण कम होता है, तो ये डिजाइन सूर्य के प्रकाश को अंदर आने देते हैं, जिससे अंदर का भाग स्वाभाविक रूप से गर्म रहता है। ली कॉर्ब्यूजियर ने अपने डिजाइन अवधारणा को सिद्ध करने के लिए 'टावर ऑफ शैडोज़' भी बनाया था, जहां चारों ओर से खुला होने के बावजूद सूरज की रोशनी अंदर नहीं आती।

एक और प्रणाली 'डबल रूफ सिस्टम' थी, जहां छत के नीचे एक और स्लैब होती थी, जिसके बीच एक हवा का गैप होता था। यह गैप इन्सुलेशन का काम करता था, जिससे गर्मी नीचे नहीं आती थी और बिना पंखे या कूलर के घर के अंदर ठंडक बनी रहती थी। इसके अलावा, इमारतों की छतों पर गहरे ओवरहैंग्स (छज्जे) बनाए गए थे, जो गर्मियों में धूप को और बरसात में खिड़कियों को सुरक्षित रखते थे। ली कॉर्ब्यूजियर का एक और सिद्धांत 'बीटो बोए' (रॉ कंक्रीट) था, जिसमें इमारतों को प्लास्टर या सजावट से नहीं ढका गया, बल्कि कंक्रीट का मूल बनावट ही मुखौटा था।

स्वच्छता, हरियाली और सख्त नियम: चंडीगढ़ क्यों है बेमिसाल?

एक शहर का निर्माण करना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है, लेकिन उसका प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती है। गुरुग्राम जैसे शहर, जो आधुनिक डिजाइन के साथ विकसित हुए, थोड़ी सी बारिश में ही अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। लेकिन चंडीगढ़ में ऐसी समस्याएं आमतौर पर देखने को नहीं मिलतीं। आज भी चंडीगढ़ भारत के सबसे स्वच्छ शहरों में से एक है, जहां हर सेक्टर में घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र किया जाता है और अपशिष्ट पृथक्करण प्रणाली काफी सक्रिय है। सार्वजनिक शौचालय सुव्यवस्थित और उपयोग योग्य हैं, जो अन्य शहरों के लिए एक सपना माना जाता है।

चंडीगढ़ सचमुच एक 'गार्डन सिटी' है, जहां हर सेक्टर के बीच चौड़ी ग्रीन बेल्ट्स हैं। सेक्टर 16 का रोज गार्डन हो या सुखना लेक का पाथवे, ये सिर्फ जगहें नहीं, बल्कि शहर की ऑक्सीजन सप्लाई हैं। चंडीगढ़ के क्लटर-फ्री रहने का एक और कारण यहां के सख्त निर्माण मानदंड हैं। यहां ऊंची इमारतों के निर्माण की अनुमति सीमित है, जिससे स्काईलाइन एक समान दिखती है। मेट्रो सिस्टम न होने के बावजूद, इसकी जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि हर सेक्टर पैदल चलने योग्य है, दूरियां कम हैं, और सार्वजनिक परिवहन तथा साइकिलें आसानी से उपलब्ध हैं। यह सब कुछ शहर के नागरिकों के सहयोग से चलता है, जो नियमों का पालन करते हैं। 70 साल बाद भी चंडीगढ़ वैसा ही स्वच्छ, शांतिपूर्ण और व्यवस्थित बना हुआ है।

आर्थिक केंद्र क्यों नहीं बन पाया चंडीगढ़?

इतनी बेहतरीन प्लानिंग और बुनियादी ढांचे के बावजूद, चंडीगढ़ भारत के बड़े आर्थिक केंद्रों में से एक क्यों नहीं बन पाया? इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:

  • केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा (UT Status): चंडीगढ़ एक केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका अपना निर्वाचित सरकारी सिस्टम नहीं है। पूर्ण स्वायत्तता न होने के कारण, यह स्वतंत्र औद्योगिक नीति या टैक्स इंसेंटिव नहीं बना सकता। गुरुग्राम या बेंगलुरु जैसे शहरों में राज्य सरकारों ने विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए और स्टार्टअप्स को समर्थन दिया, लेकिन चंडीगढ़ में ऐसी प्रशासनिक लचीलेपन की कमी थी।
  • टेक या स्टार्टअप बूम का अभाव: यहां कोई बड़ा आईटी पार्क, यूनिकॉर्न या स्टार्टअप इकोसिस्टम विकसित नहीं हुआ। टैलेंट ज्यादातर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा या सार्वजनिक सेवाओं में अवशोषित होता है, जबकि अन्य लोग मोहाली, दिल्ली-एनसीआर या बेंगलुरु जैसे शहरों में चले जाते हैं।
  • वाणिज्यिक विस्तार की धीमी गति: यहां सख्त रियल एस्टेट नीतियां हैं, फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) सीमित है, ऊंची इमारतों पर प्रतिबंध है, और भूमि की उपलब्धता कम है। जिन व्यवसायों को बड़े बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है, वे चंडीगढ़ छोड़कर इसके सैटेलाइट कस्बों में चले जाते हैं।
  • सैटेलाइट शहरों का प्रभाव: मोहाली, पंचकूला और जीरकपुर जैसे पड़ोसी शहर चंडीगढ़ के पास विकसित हुए हैं, जहां आईटी पार्क और उद्योग सक्रिय हैं। जो भी आर्थिक गतिविधियां चंडीगढ़ में हो सकती थीं, वे इन पड़ोसी शहरों में स्थानांतरित हो गईं।

हालांकि, चंडीगढ़ के निवासियों को इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। वे गुरुग्राम या मुंबई जैसे व्यस्त जीवनशैली के पीछे नहीं भागते। उनके पास साफ हवा, सुरक्षित सड़कें, पैदल दूरी पर स्कूल और पार्क हैं, और एक अच्छी जीवनशैली है, जो उनके लिए पर्याप्त है। यह एक महत्वपूर्ण सबक है कि कैसे नागरिक सहयोग और प्रशासन के दूरदर्शिता से एक शहर अपने मूल स्वरूप को इतने सालों बाद भी बरकरार रख सकता है।

FAQs:

    • चंडीगढ़ को एक सुनियोजित शहर क्यों माना जाता है? चंडीगढ़ को इसके उत्कृष्ट शहरी नियोजन के कारण सुनियोजित माना जाता है, जिसमें कम ट्रैफिक, स्वच्छ हवा (AQI 50 के आसपास) और 50% से अधिक हरा-भरा क्षेत्र शामिल है, जो इसे भारत के अन्य बड़े शहरों से बेहतर बनाता है।
    • चंडीगढ़ को किसने डिजाइन किया था? चंडीगढ़ को स्विट्जरलैंड के प्रसिद्ध वास्तुकार ली कॉर्ब्यूजियर ने डिजाइन किया था, जिन्हें आधुनिक वास्तुकला का जनक माना जाता है। उन्होंने इसे एक जीवित मानव शरीर के रूप में कल्पना की थी।
    • चंडीगढ़ में वी1-वी7 सड़क प्रणाली क्या है? वी1-वी7 चंडीगढ़ की सात-स्तरीय सड़क पदानुक्रम प्रणाली है, जिसे ली कॉर्ब्यूजियर ने वाहनों और पैदल यात्रियों के लिए सुगम और सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया था। प्रत्येक वी-स्तर का एक विशिष्ट कार्य होता है।
    • चंडीगढ़ अपनी जलवायु को स्वाभाविक रूप से कैसे नियंत्रित करता है? चंडीगढ़ की इमारतों में 'ब्रिस सोलेल', 'डबल रूफ सिस्टम' और गहरे ओवरहैंग्स जैसे प्राकृतिक जलवायु नियंत्रण तत्व शामिल हैं, जो सूर्य की गर्मी को नियंत्रित करते हैं और बिना एयर कंडीशनिंग के इंटीरियर को ठंडा या गर्म रखते हैं।
    • चंडीगढ़ एक बड़ा आर्थिक केंद्र क्यों नहीं बन पाया? चंडीगढ़ अपने केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे, टेक या स्टार्टअप बूम की कमी, सख्त रियल एस्टेट नीतियों और मोहाली व पंचकूला जैसे पड़ोसी सैटेलाइट शहरों में आर्थिक गतिविधियों के स्थानांतरण के कारण एक बड़ा आर्थिक केंद्र नहीं बन पाया।
Neeraj Ahlawat Neeraj Ahlawat is a seasoned News Editor from Panipat, Haryana, with over 10 years of experience in journalism. He is known for his deep understanding of both national and regional issues and is committed to delivering accurate and unbiased news.