चीन-पाकिस्तान में लड़ाई: CPEC में चीन ने रोकी फंडिंग, पाकिस्तान को झटका! जानें भारत-अमेरिका का दाँव.
चीन-पाकिस्तान में लड़ाई अब सबके सामने! CPEC के लिए चीन ने पाकिस्तान को और फंड देने से किया इनकार, जानें इस भू-राजनीतिक बदलाव के गहरे मायने और भारत-अमेरिका की भूमिका।

चीन-पाकिस्तान में लड़ाई: CPEC में चीन ने रोकी फंडिंग, पाकिस्तान को झटका! जानें भारत-अमेरिका का दाँव.
By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 07 Sep 2025
चीन-पाकिस्तान में लड़ाई की खबरें अब खुलकर सामने आ रही हैं, जिससे भू-राजनीतिक समीकरणों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। हाल ही में चीन ने अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को एक बड़ा झटका देते हुए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के लिए और अधिक फंडिंग देने से साफ इनकार कर दिया है। यह खबर ऐसे समय में आई है जब पाकिस्तान का झुकाव अमेरिका की ओर बढ़ रहा है, वहीं भारत चीन के करीब आ रहा है। इस अप्रत्याशित कदम से पाकिस्तान की आर्थिक मुश्किलें और बढ़ सकती हैं, जबकि इसके पीछे भारत और अमेरिका के बदलते दाँव की भी चर्चा तेज़ हो गई है। यह पूरी स्थिति न केवल पाकिस्तान के लिए, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
क्या है चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और इसका विवादित पहलू?
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, जिसे CPEC के नाम से जाना जाता है, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 2013 में चीन द्वारा घोषित इस पहल का उद्देश्य दुनिया भर में सड़कें, रेल ट्रैक, गैस पाइपलाइन और ऊर्जा परियोजनाएँ बनाकर देशों को चीनी कर्ज में डुबोना था। CPEC के तहत, चीन के शिनजियांग प्रांत के काशगर से लेकर पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित ग्वादर बंदरगाह तक एक व्यापक कनेक्टिविटी रूट विकसित किया जा रहा है। इसमें सड़कें, रेल लाइनें, पाइपलाइन और कई बांध शामिल हैं। भारत ने इस परियोजना का लंबे समय से विरोध किया है क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है। भारत का मानना है कि PoK भारत का अभिन्न अंग है, और इस क्षेत्र में किसी भी विदेशी परियोजना का निर्माण उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है। पाकिस्तान का उद्देश्य इस गलियारे के माध्यम से PoK में चीन की उपस्थिति को मजबूत करना था, ताकि भविष्य में भारत द्वारा PoK को वापस लेने के किसी भी प्रयास की स्थिति में उसे चीन की सुरक्षा मिल सके। पाकिस्तान ने PoK के उस हिस्से में, जिस पर उसका अवैध कब्जा है, चीन को एंट्री दिलाकर उसे स्टेकहोल्डर बना दिया, ताकि भारत के साथ किसी भी टकराव में चीन अपने निवेश को बचाने के लिए पाकिस्तान के साथ खड़ा हो।
चीन ने क्यों रोकी CPEC फंडिंग? पाकिस्तान को मिला बड़ा झटका!
पाकिस्तान ने CPEC के निर्माण के लिए चीन से भारी कर्ज लिया था, जिसकी राशि विभिन्न रिपोर्टों में 50 से 60 बिलियन डॉलर के बीच बताई जाती है। हालांकि, इस कॉरिडोर के निर्माण के लिए पाकिस्तान को और अतिरिक्त धन की आवश्यकता थी। पाकिस्तान के अंदर बदलती सरकारों और बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण इस परियोजना के लिए दिए गए धन का सही उपयोग नहीं हो सका, और जितना पैसा दिया गया उसके बदले उतना काम नहीं हुआ। हाल ही में, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक के दौरान, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अपने मंत्रियों और सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ चीन से और पैसे मांगने पहुंचे, तो चीन ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। चीन ने कहा कि वह पहले ही 60 बिलियन डॉलर दे चुका है और अब और पैसा नहीं दे पाएगा। चीनी वित्त संबंधी खबरों के अनुसार, चीन ने पाकिस्तान से कहा है कि वह अब ऋण के रूप में पैसा नहीं देगा, बल्कि उसकी कंपनियाँ पाकिस्तान में काम करने के लिए एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर कर सकती हैं, जिससे वे वहीं से धन अर्जित करेंगी। चीन ने $8.5 बिलियन डॉलर के ऐसे एमओयू पर हस्ताक्षर करने की पेशकश की है। इस इंकार में सबसे प्रमुख था कराची से रोहरी तक "मेन लाइन वन" नामक रेल लाइन के निर्माण के लिए 2 बिलियन डॉलर की फंडिंग की मांग, जिसे चीन ने ठुकरा दिया। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि चीन 25 बिलियन डॉलर के उन कामों को छोड़कर जा रहा है जो पहले ही पावर जनरेशन से संबंधित पूरे हो चुके हैं; इसका अर्थ केवल यह है कि चीन अब इसमें और रुचि नहीं दिखा रहा है।
बलूचिस्तान का बढ़ता अमेरिकी प्रेम और चीन की चिंता
चीन के इस फंडिंग से पीछे हटने का एक मुख्य कारण बलूचिस्तान में बढ़ती अस्थिरता और अमेरिकी हित हैं। बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है और खनिज संपदा से भरपूर है, जिसमें अनुमानित 6 ट्रिलियन डॉलर के खनिज पाए जाते हैं, जो पाकिस्तान की कुल जीडीपी का लगभग 10 गुना है। इस क्षेत्र में विकास की कमी के कारण, बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) नामक एक विद्रोही समूह सक्रिय है जो विदेशी निवेश को लक्षित करता है। BLA के लड़ाके पाकिस्तान में काम कर रहे लगभग 29,000 चीनी नागरिकों को लगातार निशाना बनाते रहे हैं, जिससे चीनी लोगों के मारे जाने की खबरें पाकिस्तान की बड़ी हेडलाइंस बन चुकी हैं। चीनी लोग इन हमलों से बेहद डरे हुए हैं और उन्होंने पाकिस्तान सरकार से अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया था। चीन ने तो अपनी सेना भेजने तक की पेशकश की, लेकिन पाकिस्तान ने इसे अपनी बेइज्जती मानते हुए इनकार कर दिया और चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपनी सशस्त्र सेनाओं को $45 बिलियन रुपये देने का वादा किया। इस सुरक्षा विफलता के कारण चीन का छिपा हुआ मकसद, जो कि इंडियन ओसियन के लंबे समुद्री मार्ग से बचने के लिए ग्वादर पोर्ट का उपयोग कर सीधे काशगर तक तेल और गैस ले जाना था, खतरे में पड़ गया। इसी बीच, अमेरिका की नज़र भी बलूचिस्तान के रेको डिक (Reko Diq) नामक कॉपर-गोल्ड प्रोजेक्ट पर पड़ गई। डोनाल्ड ट्रंप के आदेश के बाद, एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB), जिसमें जापान का बड़ा स्टेक है लेकिन वह पश्चिमी शक्तियों से प्रभावित है, ने रेको डिक परियोजना के लिए पाकिस्तान को $410 मिलियन की मदद देने का वादा किया है। इस रेल लाइन (मेन लाइन वन) की अहमियत, जो रेको डिक से निकले माल को ले जाने के लिए महत्वपूर्ण है, अब अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा समझी जा रही है। पाकिस्तान को जब अमेरिका द्वारा बलूचिस्तान क्षेत्र से तेल, सोना और खनिज निकालने का ऑफर मिला, तो चीन को ठगा हुआ महसूस हुआ।
भारत का चीन की ओर झुकाव और बदलती भू-राजनीतिक समीकरण
यह भू-राजनीतिक बदलाव सिर्फ चीन-पाकिस्तान संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भारत की भूमिका भी अहम है। एक तरफ जहाँ पाकिस्तान का अमेरिकी प्रेम बढ़ रहा है, वहीं भारत स्वचालित रूप से चीन की ओर बढ़ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर यह तक लिख दिया है कि उन्होंने भारत और रूस को चीन के पक्ष में धकेल दिया है, जिसे वे अपनी एक विफलता के रूप में मानते हैं। रूस, भारत और चीन (RIC) का ट्रोइका (त्रय) अब दुनिया में चर्चा का विषय बन चुका है। हाल ही में हुई SCO समिट में शी जिनपिंग भारत के साथ काफी गर्मजोशी से आगे बढ़ रहे थे और स्तरीय वार्ताएं हो रही थीं, जबकि पाकिस्तान को किनारा किया जा रहा था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ 2 बिलियन डॉलर की फंडिंग की उम्मीद में गए थे, जिसे मना कर दिया गया। यह सब संकेत देता है कि चीन अब पाकिस्तान के बजाय भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता दे रहा है, जिससे चीन-पाकिस्तान में लड़ाई की आशंकाओं को बल मिलता है।
क्या पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ी भूल साबित होगी?
पाकिस्तान ने हमेशा अपनी मध्य स्थिति का लाभ उठाया है, लेकिन चीन का उससे आँखें फेर लेना उसके लिए बड़ा नुकसानदायक हो सकता है। पाकिस्तान की यह बड़ी भूल हो सकती है कि वह चीनी कर्ज को अमेरिकी कर्ज से चुकाने की कोशिश करे। डोनाल्ड ट्रंप, जो किसी के सगे नहीं माने जाते, जब कर्ज वसूली पर आते हैं तो वे यूक्रेन जैसे देशों के आधे खनिज संसाधनों पर समझौते के माध्यम से कब्जा कर चुके हैं। अगर पाकिस्तान भी ट्रंप के लोन में फँसता है, तो वह पूरी तरह से बंधुआ होकर रह जाएगा। फिलहाल, पाकिस्तान और अमेरिका के बढ़ते प्रेम को देखते हुए यह उम्मीद ही की जा सकती है कि पाकिस्तान इतना बर्बाद न हो जाए कि यह भारत के लिए भी नुकसान का कारण बने। इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि CPEC और उसके इर्द-गिर्द की भू-राजनीति में बड़े बदलाव आ रहे हैं, और चीन-पाकिस्तान में लड़ाई की चर्चा केवल अटकलें नहीं, बल्कि एक उभरती हुई वास्तविकता है।