देसी पत्रकार करमू को मिली जमानत: भिवानी कोर्ट ने पुलिस को दिया बड़ा झटका, जानिए पूरा मामला
देसी पत्रकार करमू को मनीषा मामले में मिली जमानत। भिवानी कोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई पर उठाए सवाल, आईटी एक्ट 66एफ गलत लगाने पर फटकारा। जानिए क्यों मिली जमानत और क्या है पूरा मामला।

दैनिक रियल्टी ब्यूरो | By: Neeraj Ahlawat | Date 28 Aug 2025
भिवानी। हरियाणा के भिवानी से एक बड़ी खबर सामने आई है, जहां देसी पत्रकार करमू को आज माननीय न्यायालय ने जमानत दे दी है। करमू, जिन्हें 19 या 20 अगस्त को हिरासत में लिया गया था और 21 अगस्त को कोर्ट में पेश किया गया था, लगभग नौ दिनों से मनीषा मामले में न्याय की आवाज उठाने के "कसूर" में जेल में बंद थे। उनकी जमानत को पत्रकारिता के चौथे स्तंभ पर हुए कथित हमले के खिलाफ एक बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। माननीय न्यायालय ने पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं, खासकर आईटी एक्ट की धारा 66एफ लगाने के संबंध में।
करमू को मिली जमानत, न्यायपालिका ने दिखाया भरोसा
देसी पत्रकार करमू को 28 अगस्त को माननीय न्यायालय ने ₹400 के निजी मुचलके पर जमानत दे दी है। उनकी लीगल टीम, जिसमें एडवोकेट संदीप राठी, मनोज कुश और प्रवीण शर्मा शामिल हैं, ने इस लड़ाई को लड़ा। लीगल टीम के सदस्य, जो आईएसए लीगल एसोसिएट के तहत संसार क्रांति के लीगल काम को देखते हैं, ने कोर्ट में जोरदार पैरवी की। पुलिस ने करमू की जमानत का विरोध किया था, लेकिन लगभग एक घंटे चली बहस के बाद, माननीय न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और भोजनावकाश के बाद अपना फैसला सुनाया। इस फैसले को देशभर के पत्रकारों के लिए एक सकारात्मक संदेश माना जा रहा है।
क्या था पूरा मामला? आईटी एक्ट 66एफ पर उठे सवाल
करमू पर 17-18 अगस्त को 178 एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें विभिन्न धाराएं और आईटी एक्ट से संबंधित प्रावधान शामिल थे। उन्हें 19 या 20 अगस्त को हिरासत में लिया गया और 21 अगस्त को कोर्ट में पेश करते वक्त आईटी एक्ट की धारा 66एफ भी जोड़ी गई थी। करमू के वकील संदीप राठी ने स्पष्ट किया है कि यह धारा (66एफ) बिल्कुल भी नहीं बनती थी। उनके अनुसार, करमू को पहले नोटिस दिया जाना चाहिए था, उन्हें बुलाया जाना चाहिए था और उनका जवाब लेना चाहिए था। लीगल टीम का मानना है कि इस धारा को जानबूझकर इसलिए लगाया गया था ताकि करमू अधिक दिनों तक जेल में रह सकें। धारा 66एफ को "साइबर टेररिज्म" से संबंधित माना जाता है, और वकीलों ने इसे पत्रकारों के मौलिक अधिकारों और प्रक्रिया का उल्लंघन बताया।
पुलिस की मंशा पर कोर्ट ने क्या कहा?
माननीय न्यायाधीश ने पुलिस से सख्त लहजे में पूछा कि आईटी एक्ट की धारा 66एफ, जिसे साइबर टेररिज्म कहा जाता है, क्यों लगाई गई थी। पुलिस के जांच अधिकारी (आईओ) के पास इस सवाल का कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। न्यायालय ने यह भी पूछा कि जब यह धारा लगा दी गई थी, तो उसे हटाया क्यों नहीं गया। इस पर भी पुलिस के पास कोई तथ्य नहीं था। इससे माननीय न्यायालय को भी कहीं न कहीं पुलिस की मंशा स्पष्ट हो गई, और कोर्ट ने पुलिस को चेतावनी भी दी कि इस प्रकार की धाराएं तथ्यों को सत्यापित किए बिना नहीं लगानी चाहिए। यह दर्शाता है कि न्यायालय ने पुलिस की कार्रवाई को गलत पाया और पत्रकारों के अधिकारों का संरक्षण किया।
पत्रकारों की आवाज दबाने की कोशिश
करमू जैसे देसी पत्रकार, जो अपने देसी अंदाज में पत्रकारिता करते हैं और लोगों की जरूरतें पूरी करते हैं, अक्सर उन मुद्दों पर आवाज उठाते हैं जहां कोई और नहीं बोलता। करनाल में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था जहां करमू ने बूढ़े बस कंडक्टरों और ड्राइवरों की मांग उठाई थी, जिसके बाद उन पर सरकारी कामकाज में बाधा डालने का पर्चा दर्ज किया गया था। लीगल टीम ने बताया कि 30-35 अन्य लोगों पर भी पर्चा दर्ज है, लेकिन करमू को विशेष रूप से निशाना बनाया गया था ताकि "सब सीधे हो जाएं"। इस घटना को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी पत्रकारिता पर आघात पहुंचाने का प्रयास माना जा रहा है। अधिवक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि जब पुलिस प्रशासन अपनी सीमाओं को लांघ जाता है, तो न्यायालय ही अधिकारों की रक्षा करता है।
एकजुटता की अपील और भविष्य की चुनौतियां
करमू की जमानत के बाद, अधिवक्ताओं ने पूरे पत्रकार समुदाय से एकजुट रहने और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की है। उन्होंने जोर दिया कि न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और माननीय न्यायाधीश अधिकारों की रक्षा के लिए बैठे हैं। एक अधिवक्ता ने उदाहरण दिया कि जिस तरह वकील अपने किसी साथी पर आंच आने पर एकजुट हो जाते हैं और पूरे हरियाणा में वर्क सस्पेंड कर देते हैं, उसी तरह पत्रकारों को भी एक-दूसरे के साथ खड़ा होना चाहिए। यह संदेश दिया गया है कि "दबना नहीं है" और सोशल जस्टिस की आवाज उठाने में घबराना नहीं चाहिए। मोहना गांव के सरपंच राजेंद्र ने भी माननीय न्यायालय और पत्रकार संघ का धन्यवाद किया और सरकार से "सांगुर बाबा" (भ्रष्ट तत्वों) पर लगाम कसने की अपील की।
हालांकि, यह भी स्वीकार किया गया कि पत्रकार साथी कई बार भावनाओं में बहकर अपनी "लाइन" क्रॉस कर जाते हैं। इस विषय पर मंथन और कार्यशालाओं की आवश्यकता पर बल दिया गया, ताकि पत्रकार अपनी सीमाओं का ध्यान रखें और न्याय की लड़ाई प्रभावी ढंग से लड़ सकें। मनीषा हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए करमू सहित कई पत्रकारों और सोशल वर्कर्स ने आवाज उठाई थी। करमू की रिहाई से यह साफ हो गया है कि न्यायपालिका पत्रकारों के अधिकारों की संरक्षक है, और यह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। करमू आज शाम 6-7 बजे तक रिहा होने की उम्मीद है।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1: देसी पत्रकार करमू को जमानत कब मिली? A1: देसी पत्रकार करमू को लगभग नौ दिनों की हिरासत के बाद 28 अगस्त को माननीय न्यायालय द्वारा जमानत दी गई है। उन्हें 19 या 20 अगस्त को हिरासत में लिया गया था और 21 अगस्त को कोर्ट में पेश किया गया था।
Q2: करमू को किस मामले में गिरफ्तार किया गया था? A2: करमू को मुख्य रूप से मनीषा हत्याकांड की गुत्थी में न्याय की आवाज उठाने के लिए गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा, उन पर आईटी एक्ट की धारा 66एफ (साइबर टेररिज्म) सहित विभिन्न धाराएं लगाई गई थीं।
Q3: आईटी एक्ट की धारा 66एफ क्या है और क्यों लगाई गई थी? A3: आईटी एक्ट की धारा 66एफ साइबर टेररिज्म से संबंधित है। लीगल टीम के अनुसार, यह धारा करमू पर गलत तरीके से लगाई गई थी, शायद इसलिए ताकि उन्हें लंबे समय तक जेल में रखा जा सके।
Q4: न्यायालय ने पुलिस की कार्रवाई पर क्या टिप्पणी की? A4: माननीय न्यायालय ने पुलिस से सख्त लहजे में पूछा कि 66एफ धारा क्यों लगाई गई और उसे हटाया क्यों नहीं गया। न्यायालय ने पुलिस को तथ्यों के सत्यापन के बिना ऐसी धाराएं न लगाने की चेतावनी भी दी है।
Q5: करमू की रिहाई से पत्रकार समुदाय को क्या संदेश मिला? A5: करमू की रिहाई से पत्रकार समुदाय को यह संदेश मिला है कि उन्हें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते रहना चाहिए और न्यायपालिका उनके अधिकारों की संरक्षक है। यह पत्रकारों को एकजुट होकर लड़ने और अपनी आवाज दबाने की कोशिशों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है।