डोनाल्ड ट्रंप भारत बयान: 'हमने भारत को रूस-चीन के हाथों खो दिया', पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने जताई गहरी चिंता
डोनाल्ड ट्रंप भारत बयान: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत-रूस-चीन गठजोड़ पर दिया बड़ा बयान, जानें वैश्विक संबंधों पर इसका क्या होगा असर.

By: दैनिक रियल्टी ब्यूरो | Date: | 05 Sep 2025
दिल्ली, भारत। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के वैश्विक संबंधों को लेकर एक महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला बयान दिया है, जिसमें उन्होंने सीधे तौर पर कहा है कि "लगता है हमने भारत को खो दिया है"। ट्रंप के अनुसार, भारत अब रूस और चीन के हाथों में चला गया है, और उन्होंने इस कथित गठजोड़ के "उज्जवल भविष्य" की कामना भी की है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और सामरिक स्वायत्तता को प्रमुखता दे रहा है, जिससे यह टिप्पणी भू-राजनीतिक गलियारों में एक नई बहस छेड़ सकती है। इस बड़े बयान के साथ ही, भारत सरकार अपने प्रवासी नागरिकों के कल्याण को लेकर भी सक्रिय है, विशेषकर ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में हुए 'एंटी-इमीग्रेशन' विरोध प्रदर्शनों के बाद भारतीय समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयासों में। यह विस्तृत रिपोर्ट डोनाल्ड ट्रंप के बयान के गहरे निहितार्थों, भारत की वर्तमान विदेश नीति के सिद्धांतों और ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रवासियों से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर प्रकाश डालेगी, जिससे पाठक इन जटिल राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों को बेहतर ढंग से समझ सकें और उनकी महत्ता को जान सकें।
डोनाल्ड ट्रंप भारत बयान: 'भारत को रूस-चीन के हाथों खो दिया'
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान, जिसमें उन्होंने दृढ़ता से कहा है कि "लगता है हमने भारत को खो दिया है" और भारत "रूस को चीन के हाथों खो दिया" गया है, वैश्विक मंच पर गंभीर कूटनीतिक और भू-राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है। यह टिप्पणी उस समय की है जब विश्व की प्रमुख शक्तियां अपनी-अपनी भू-राजनीतिक रणनीतियों को पुनर्परिभाषित करने और वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी हैं। ट्रंप का यह सीधा दावा, कि भारत अब रूस और चीन के साथ एक नए "गठजोड़" का हिस्सा बन गया है, अमेरिकी विदेश नीति के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है, जो भारत की पारंपरिक गुटनिरपेक्ष नीति और पश्चिमी देशों के साथ बढ़ती रणनीतिक साझेदारी के विपरीत प्रतीत हो सकता है। ट्रंप ने इस कथित गठजोड़ के "उज्जवल भविष्य" की कामना भी की है, जो उनके बयान की व्याख्या को और अधिक जटिल बना देता है। यह कामना एक ओर जहां व्यंग्यात्मक लग सकती है, वहीं दूसरी ओर इसे वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता और बहुध्रुवीयता की स्वीकार्यता के रूप में भी देखा जा सकता है। यह बयान भारत की उस नीति को चुनौती दे सकता है जो सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने और किसी भी गुट में शामिल न होने पर केंद्रित है। यह सवाल उठाता है कि क्या अमेरिका अब भारत को अपने पारंपरिक पश्चिमी सहयोगियों के खेमे से बाहर मान रहा है, और यदि ऐसा है, तो इसके क्या दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं। यह टिप्पणी भारत की कूटनीति पर भी दबाव डाल सकती है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और स्पष्ट करे।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान का निहितार्थ
डोनाल्ड ट्रंप के डोनाल्ड ट्रंप भारत बयान का गहरा निहितार्थ केवल भारत-अमेरिका संबंधों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यापक वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य पर भी प्रकाश डालता है। "हमने भारत को खो दिया है" जैसी टिप्पणी यह दर्शाती है कि अमेरिका की नज़र में भारत की रणनीतिक स्थिति में बदलाव आया है। यदि अमेरिका जैसे प्रमुख देश को लगता है कि भारत उसके प्रभाव क्षेत्र से निकलकर रूस और चीन के साथ निकटता बढ़ा रहा है, तो यह वैश्विक शक्ति संतुलन में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रक्षा और रणनीतिक संबंध रहे हैं, जबकि चीन के साथ उसके संबंध जटिल और बहुआयामी हैं, जिसमें सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों शामिल हैं। ट्रंप का "गठजोड़" शब्द का प्रयोग एक ऐसे गठबंधन की ओर इशारा करता है जो शायद पारंपरिक सैन्य या राजनीतिक संरेखण से परे है, और जिसमें आर्थिक, सामरिक और भू-रणनीतिक हित एक साथ बुने हुए हैं। यह बयान पश्चिमी देशों की चिंताओं को भी दर्शाता है कि भारत, अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए, उन वैश्विक शक्तियों के साथ संबंध मजबूत कर रहा है जिन्हें पश्चिमी देश अपने प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। भारत की विदेश नीति हमेशा से ही रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित रही है, जिसका अर्थ है कि वह अपने हितों के अनुरूप स्वतंत्र निर्णय लेता है, भले ही वे निर्णय किसी विशेष गुट के साथ संरेखित न हों। ट्रंप की यह टिप्पणी भारतीय विदेश नीति के इस लचीलेपन और बहु-संरेखण दृष्टिकोण की एक अमेरिकी व्याख्या प्रस्तुत करती है।
भारत की वैश्विक स्थिति और गठजोड़ पर ट्रंप की टिप्पणी
डोनाल्ड ट्रंप की भारत की वैश्विक स्थिति और विशेष रूप से भारत रूस चीन गठजोड़ पर की गई टिप्पणी, भारत की विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांतों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रदान करती है। जहां ट्रंप ने इस कथित गठजोड़ के "उज्जवल भविष्य की कामना" की है, वहीं भारत का दृष्टिकोण "विविधता में शक्ति" के सिद्धांत पर आधारित है। भारत का मानना है कि विभिन्न देशों के साथ व्यापक और मजबूत संबंध बनाना उसकी रणनीतिक ताकत को बढ़ाता है, न कि उसे किसी एक खेमे में बांधता है। ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। इस साझेदारी में "पीपल टू पीपल" संबंध एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व हैं, जो दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करते हैं। यह दर्शाता है कि भारत केवल सरकारों के बीच ही नहीं, बल्कि लोगों के बीच भी गहरे संबंध बनाने में विश्वास रखता है, जो उसकी विदेश नीति को एक मानवीय आयाम प्रदान करता है। ट्रंप का बयान भारत की इस बहुआयामी कूटनीति पर एक पश्चिमी लेंस से की गई टिप्पणी है, जो भारत की बढ़ती आर्थिक और सामरिक शक्ति के कारण वैश्विक परिदृश्य में उसकी केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है। भारत किसी भी ऐसे गठजोड़ को अपने राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में देखता है जो उसकी संप्रभुता, विकास और सुरक्षा को बढ़ावा दे। यह टिप्पणी भारत को अपनी वैश्विक भूमिका को और अधिक स्पष्ट करने और विभिन्न वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रेरित कर सकती है।
ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय की चिंताएं और सरकार का हस्तक्षेप
एक ओर जहां डोनाल्ड ट्रंप भारत बयान ने वैश्विक कूटनीति पर बहस छेड़ी है, वहीं दूसरी ओर भारत सरकार अपने प्रवासी नागरिकों के कल्याण और सुरक्षा के प्रति अपनी गहन प्रतिबद्धता को लगातार प्रदर्शित कर रही है। इसी संदर्भ में, 31 अगस्त को ऑस्ट्रेलिया के कई शहरों में हुए "एंटी-इमीग्रेशन" विरोध प्रदर्शनों के बाद भारतीय समुदाय के सामने उत्पन्न हुई चिंताओं पर भारत सरकार ने तत्काल और सक्रिय रूप से कदम उठाए हैं। इन विरोध प्रदर्शनों का उद्देश्य आप्रवासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाना था, जिससे वहां रहने वाले भारतीय प्रवासियों के मन में असुरक्षा की भावना पैदा होना स्वाभाविक था। ऑस्ट्रेलिया में स्थित भारत के उच्चायोग और महावाणिज्य दूतावासों ने इस संवेदनशील मुद्दे पर वहां की सरकार के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय के विभिन्न संगठनों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा है। यह संपर्क केवल विरोध प्रदर्शनों के बाद ही नहीं, बल्कि उनसे पहले भी भारतीय समाज की चिंताओं को ऑस्ट्रेलियाई सरकार के सामने रखने के लिए स्थापित किया गया था। भारत सरकार ने ऑस्ट्रेलिया सरकार के साथ साझा की गई इन चिंताओं पर उनका जवाब भी प्राप्त किया है, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने स्वीकार किया है कि वे इन चिंताओं को समझते हैं और उन्हें गंभीरता से लेते हैं। यह घटनाक्रम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत सरकार अपने प्रवासी नागरिकों की सुरक्षा, गरिमा और उनके हितों की रक्षा को कितनी गंभीरता से लेती है और इसे अपनी विदेश नीति का एक अभिन्न अंग मानती है।
प्रोटेस्ट के बाद भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध और राजनयिक प्रयास
ऑस्ट्रेलिया में हुए एंटी-इमीग्रेशन विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद भारतीय समुदाय की चिंताओं पर भारत सरकार के त्वरित राजनयिक प्रयासों ने भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों के महत्व को उजागर किया है। भारत सरकार की यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता कि "सभी भारतीय विदेशों में सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें", उसकी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" केवल सरकारों और आर्थिक हितों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें "पीपल टू पीपल" या लोगों के आपसी संबंध एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व हैं। ये संबंध दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को और अधिक मजबूती प्रदान करते हैं। ऐसे में, जब ऑस्ट्रेलिया के कई शहरों में 31 अगस्त को हुए विरोध प्रदर्शनों ने भारतीय समुदाय में चिंता पैदा की, तो भारत के उच्चायोग और महावाणिज्य दूतावासों ने तुरंत ऑस्ट्रेलियाई सरकार और वहां के भारतीय प्रवासी संगठनों के साथ संपर्क स्थापित किया। इन राजनयिक प्रयासों का उद्देश्य न केवल भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था, बल्कि यह भी था कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार को भारतीय समुदाय की भावनाओं और चिंताओं से अवगत कराया जाए। ऑस्ट्रेलियाई सरकार की ओर से इन चिंताओं को "मानने" का जवाब दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच संवाद और समझ का स्तर उच्च है। यह घटनाक्रम भारत की उस कूटनीतिक कुशलता को भी प्रदर्शित करता है, जिसके तहत वह अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करते हुए भी द्विपक्षीय संबंधों में संतुलन और सद्भाव बनाए रखता है।
भारत की विदेश नीति: विविधता और सामरिक साझेदारी का महत्व
भारत की विदेश नीति अपने मूल में "विविधता में शक्ति" के सिद्धांत पर आधारित है। जैसा कि स्रोत में भी उल्लेख किया गया है, भारत का यह दृढ़ विश्वास है कि विभिन्न देशों और संस्कृतियों के साथ संबंध स्थापित करना और उन्हें मजबूत करना ही उसकी वास्तविक ताकत है। यह दृष्टिकोण भारत को किसी एक शक्ति गुट से बंधे रहने के बजाय, अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति देता है। इसी दर्शन के तहत, भारत ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ "व्यापक रणनीतिक साझेदारी" को अत्यधिक महत्व देता है। इन साझेदारियों में केवल व्यापार या सुरक्षा सहयोग ही नहीं, बल्कि "पीपल टू पीपल" संबंध भी एक "अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व" हैं। ये मानवीय जुड़ाव ही वास्तव में रणनीतिक संबंधों को "और मजबूत" करते हैं, क्योंकि वे देशों के बीच आपसी समझ, विश्वास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देते हैं। डोनाल्ड ट्रंप भारत बयान जैसे अवलोकन, भले ही वे भारत की विदेश नीति की एक बाहरी व्याख्या प्रस्तुत करते हों, भारत की इस मूलभूत नीति को नहीं बदलते हैं। भारत का लक्ष्य एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण और जिम्मेदार हितधारक के रूप में अपनी भूमिका निभाना है, जहां वह अपनी संप्रभुता बनाए रखते हुए वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में योगदान दे सके। भारत रूस चीन गठजोड़ पर की गई कोई भी टिप्पणी, भारत के इस व्यापक दृष्टिकोण से ही समझी जानी चाहिए, जो किसी एक गुट का हिस्सा बनने के बजाय, सभी के साथ संबंध सुधारने और वैश्विक शांति व समृद्धि में योगदान देने पर केंद्रित है।