ईरान परमाणु सुविधा पर रहस्यमय हमला: अमेरिका-इजरायल की भूमिका पर उठे सवाल
ईरान की नाभिकीय सुविधा पर रहस्यमय हमले की जांच, अमेरिका और इजरायल की संलिप्तता के संकेत। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया और भविष्य के प्रभावों का विश्लेषण।

तेहरान के पास स्थित फोर्डो परमाणु सुविधा पर हुए रहस्यमयी हमले ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में तूफान ला दिया है। ईरानी अधिकारियों ने बताया कि 22 जून की रात हुई इस "तकनीकी घटना" से सुविधा को आंशिक क्षति पहुँची है, जबकि पश्चिमी खुफिया सूत्रों का दावा है कि यह एक सोफिस्टिकेटेड साइबर-सैबोटाज अटैक था।
घटना का विस्तृत विवरण
सूत्रों के अनुसार, हमला रात 2:17 बजे (स्थानीय समय) हुआ जब सुविधा के केंद्रीय नियंत्रण प्रणाली में अचानक "क्रिटिकल मालफंक्शन" दर्ज किया गया। ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन (AEOI) के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने इसे "तकनीकी दुर्घटना" बताया, लेकिन पश्चिमी मीडिया रिपोर्ट्स साइबर हमले की ओर इशारा कर रही हैं।
घटना के प्रमुख तथ्य
- स्थान: फोर्डो अंडरग्राउंड न्यूक्लियर फैसिलिटी (तेहरान से 100 किमी दक्षिण)
- समय: 22 जून, रात 2:17 बजे (ईरानी समय)
- क्षति: सेंट्रीफ्यूज कैस्केड प्रणाली को आंशिक नुकसान
- पीछे के संदिग्ध: स्टक्सनेट 2.0 साइबर वेपन का इस्तेमाल होने की आशंका
- मानवीय क्षति: ईरान के अनुसार कोई हताहत नहीं
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
ईरान की प्रतिक्रिया
राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी ने "शत्रुतापूर्ण कार्रवाई" की निंदा करते हुए कहा: "यह हमारे राष्ट्रीय हितों पर हमला है। हम जवाबी कार्रवाई का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।"
अमेरिका का रुख
व्हाइट हाउस प्रवक्ता ने किसी भी भूमिका से इनकार किया: "हम इस घटना की जाँच कर रहे हैं।" हालाँकि, पेंटागन सूत्रों ने बताया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियाँ इस पर नजर बनाए हुए हैं।
इजरायल का मौन
नेतन्याहू सरकार ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। मॉसाद के पूर्व अधिकारी योसि कोहेन ने गुमनाम सूत्रों के हवाले से बताया: "ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।"
विश्लेषण: कौन है पीछे?
रक्षा विशेषज्ञ डॉ. अरुण मोहन के अनुसार: "हमले की प्रकृति और तकनीकी परिष्कार 2010 के स्टक्सनेट हमले जैसा है, जिसे इजरायल-अमेरिका साझेदारी का माना जाता था। इस बार भी ट्रैकिंग इन्हीं देशों की ओर जाती है।"
साइबर युद्ध के नए आयाम
साइबर सुरक्षा फर्म कैस्परस्की की रिपोर्ट के अनुसार, इस हमले में एक उन्नत "जीरो-डे एक्सप्लॉइट" का इस्तेमाल हुआ, जो ईरानी फायरवॉल को बायपास करने में सफल रहा। यह तकनीक केवल कुछ देशों के पास मौजूद है।
भविष्य के प्रभाव
- तेल बाजार में उथल-पुथल: अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में 4% की वृद्धि दर्ज की गई है।
- वियना वार्ता पर खतरा: ईरान-पश्चिम परमाणु समझौते की बहाली की प्रक्रिया फिलहाल ठप्प हो गई है।
- क्षेत्रीय तनाव: हिजबुल्लाह और हमास ने ईरान के समर्थन में "प्रतिशोधी कार्रवाई" की चेतावनी दी है।
- भारत पर प्रभाव: चाबहार बंदरगाह परियोजना में देरी की आशंका, कच्चे तेल की आपूर्ति चिंता का विषय।
ऐतिहासिक संदर्भ
यह पिछले एक दशक में ईरानी परमाणु सुविधाओं पर छठा प्रमुख हमला है। 2010 में स्टक्सनेट वायरस, 2021 में नतन्ज़ सुविधा में विस्फोट, और 2023 में इस्फ़हान में ड्रोन अटैक जैसी घटनाओं ने ईरान-पश्चिम तनाव को बढ़ाया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह हमला परमाणु प्रसार रोकने के लिए "शैडो वॉर" का नया अध्याय है।
अंतरराष्ट्रीय कानूनी पहलू
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) के तहत किसी देश की संप्रभुता पर हमला अवैध है। हालाँकि, अमेरिका और इजरायल इसे "निवारक आत्मरक्षा" का अधिकार बताते रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस अब्दुल क़ावी देसाई ने चेतावनी दी: "ऐसे हमले अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए खतरा हैं।"