Russia-India Oil Deal: रूस का सस्ता तेल! भारत को कैसे हुआ फायदा, जानिए पूरा प्लान

रूस कैसे निकालता है सस्ता तेल? भारत और चीन क्यों बने उसके सबसे बड़े ग्राहक? जानिए रशिया की सस्ती तेल रणनीति और वैश्विक ऊर्जा बाजार पर इसका प्रभाव।

Aug 28, 2025 - 10:58
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Russia-India Oil Deal: रूस का सस्ता तेल! भारत को कैसे हुआ फायदा, जानिए पूरा प्लान
रूस का सस्ता तेल उत्पादन और भारत को लाभ

दैनिक रियल्टी ब्यूरो | By: Neeraj Ahlawat Publish Date: 28 Aug 2025

Opening: क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली हथियार एटम बम या फाइटर जेट्स नहीं, बल्कि एक काला गाढ़ा तरल पदार्थ हो सकता है? जी हां, हम बात कर रहे हैं क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल की। यह एक ऐसा संसाधन है जिसने कई देशों को बनाया भी और बर्बाद भी किया। आज इस खेल का सबसे बड़ा खिलाड़ी रशिया है, जो तमाम मुश्किलों और पश्चिमी देशों के कड़े प्रतिबंधों (Western sanctions) के बावजूद पानी के दाम पर तेल बेच रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या है रूस के सस्ते तेल का राज, कौन से देश इससे चोरी-छुपे या खुलेआम तेल खरीद रहे हैं, और भविष्य में यह वैश्विक ऊर्जा समीकरणों को कैसे बदल सकता है? आइए आज हम इन्हीं सवालों के गहरे रहस्यों से पर्दा उठाते हैं और समझते हैं कि भारत जैसे देशों ने इस स्थिति का लाभ कैसे उठाया है।


रूस के सस्ते तेल का राज क्या है?

रूस के पास सस्ता तेल उत्पादन करने के पीछे कोई जादुई फॉर्मूला नहीं है, बल्कि इसके कई बड़े और रणनीतिक कारण हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण रूस की भौगोलिक स्थिति है। रूस के पास दुनिया के सबसे विशाल प्राकृतिक गैस और तेल भंडार हैं, जिसका अधिकांश हिस्सा साइबेरिया के बर्फीले इलाकों में है। ये भंडार इतने बड़े हैं कि रूस को तेल खोजने के लिए बहुत अधिक पैसा खर्च नहीं करना पड़ता।

दूसरा बड़ा कारण है सोवियत युग का बुनियादी ढाँचा (Soviet-era Infrastructure)। जब सोवियत यूनियन अस्तित्व में था, तब पूरे देश में तेल और गैस निकालने के लिए पाइपलाइनों और रिफाइनरियों का एक विशाल जाल बिछाया गया था। आज भी वही पुराना इंफ्रास्ट्रक्चर काम आ रहा है और चूंकि इस पर नया पूंजी निवेश (new capital investment) कम है, इसलिए उनकी उत्पादन लागत अपने आप कम हो जाती है।

तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु राज्य नियंत्रण (State Control) है। रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनियां जैसे कि रोसनेफ्ट (Rosneft) और गैज़प्रोम (Gazprom) सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियां हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि सरकार तेल की कीमत को नियंत्रित कर सकती है। वह घरेलू बाजार (Domestic Market) में इसे सस्ता रख सकती है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार (International Market) में अपनी मर्जी से दाम तय कर सकती है। यह राज्य नियंत्रण उन्हें तेल को एक भू-राजनीतिक उपकरण (Geopolitical Tool) के रूप में इस्तेमाल करने की शक्ति देता है।


साइबेरिया की बर्फीली जमीन से तेल निकालना कैसे मुमकिन?

आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि साइबेरिया की -50°C की सर्दी में, जहां जमीन सालों से बर्फ की तरह जमी हुई है, वहां से इतना सस्ता तेल निकालना आखिर कैसे संभव है? इसके पीछे रूस की जबरदस्त आर्कटिक इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी (Arctic Engineering and Technology) है। इतनी भीषण सर्दी में सामान्य मशीनरी काम नहीं कर सकती, क्योंकि आम स्टील पत्थर की तरह टूट जाता है। इसलिए ड्रिलिंग रिग्स (drilling rigs) से लेकर पाइपलाइनों तक सब कुछ विशेष आर्कटिक-ग्रेड स्टील (Arctic Grade Steel) से बनाया जाता है, जो अत्यधिक ठंड को झेल सकता है।

सबसे बड़ी चुनौती पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) पर निर्माण करना है। यदि ड्रिलिंग की गर्मी से यह जमी हुई जमीन पिघल गई, तो पूरा का पूरा ऑयल रिग जमीन में धंस सकता है। इससे बचने के लिए संरचना को जमीन के ऊपर गहराई तक गाड़े गए स्टील या पाइप पर बनाया जाता है। तेल निकालने के बाद उसे हजारों किलोमीटर दूर रिफाइनरियों तक ले जाना भी एक चुनौती है। इसके लिए इंसुलेटेड पाइपलाइनों (Insulated Pipelines) का जाल बिछाया गया है, जिनमें तेल के प्रवाह को बनाए रखने के लिए उसे नियमित अंतराल पर गर्म किया जाता है ताकि वह अंदर जम न जाए। यह पूरा प्रोसेस बेहद महंगा और मुश्किल है, लेकिन सालों के अनुभव ने रूस को इसका मास्टर बना दिया है।


यूक्रेन युद्ध के बाद कौन बना रूस का सबसे बड़ा तेल ग्राहक?

यूक्रेन पर हमले से पहले, रूस का सबसे बड़ा तेल ग्राहक यूरोप था। जर्मनी, नीदरलैंड, पोलैंड जैसे देश पूरी तरह से रूसी ऊर्जा पर निर्भर थे। लेकिन युद्ध के बाद, अमेरिका और यूरोपीय संघ (European Union) ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध (Economic Sanctions) लगाए। इसका उद्देश्य रूस की अर्थव्यवस्था को तोड़ना था ताकि वह युद्ध को वित्त पोषित न कर पाए। यूरोप ने रूस से तेल खरीदना लगभग बंद कर दिया, जिससे रूस बर्बाद हो सकता था।

हालांकि, रूस ने एक नया प्लान बनाया और उसने अपना तेल एशिया की तरफ मोड़ दिया। इस मौके का सबसे ज्यादा फायदा दो बड़े देशों ने उठाया: चीन और भारत (China and India)। रूस ने इन देशों को बाजार दर से बहुत भारी डिस्काउंट पर तेल ऑफर किया। जहां दुनिया में क्रूड ऑयल $100 प्रति बैरल बिक रहा था, वहीं रूस ने भारत और चीन को 70 से $80 प्रति बैरल तेल बेचा। इससे रूस को लगातार नकदी मिलती रही और उसकी अर्थव्यवस्था चलती रही। दूसरी ओर, चीन और भारत को सस्ता तेल मिलने से उनकी अर्थव्यवस्थाओं को भी लाभ हुआ।


भारत ने क्यों खरीदा रूस से सस्ता तेल? अमेरिका की आपत्ति और भारत का जवाब

जब भारत ने रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदना शुरू किया, तो अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने इसकी आलोचना की। उनका कहना था कि भारत एक तरह से रूस की युद्ध मशीन को वित्त पोषित कर रहा है। लेकिन भारतीय सरकार ने इस पर एकदम साफ स्टैंड लिया। उनका तर्क था कि भारत एक विकासशील देश है जिसकी अपनी ऊर्जा जरूरतें हैं। हमारी 140 करोड़ की आबादी के लिए सस्ती ऊर्जा बहुत जरूरी है। अगर हमें कहीं से सस्ता तेल मिल रहा है, जिससे हमारे देश के नागरिकों पर महंगाई का बोझ कम हो, तो हम उसे जरूर खरीदेंगे। यह भारत का राष्ट्रीय हित (National Interest) है।

भारत ने साफ कहा कि यूरोप के देश सालों तक रूस से गैस और तेल खरीदते रहे हैं, तब किसी ने सवाल नहीं उठाया। अब जब उन्होंने खरीदना बंद कर दिया तो वे भारतीयों पर दबाव नहीं बना सकते। इस कदम से भारत ने एक तीर से दो निशाने साधे। एक तरफ उसे सस्ता तेल मिला जिससे महंगाई (inflation) नियंत्रित करने में मदद मिली, और दूसरी तरफ उसने दुनिया को यह संदेश दिया कि भारत अपनी विदेश नीति (Foreign Policy) किसी के दबाव में नहीं, बल्कि अपने देशवासियों के हित में तय कर रहा है।


क्या रूस अरब देशों के तेल बाजार पर कब्जा कर लेगा?

यह सवाल सुनने में किसी हॉलीवुड फिल्म की स्क्रिप्ट जैसा लगता है, लेकिन भू-राजनीति (Geopolitics) में कुछ भी नामुमकिन नहीं होता। हालांकि, कब्जा और टेकओवर का मतलब यह नहीं होगा कि सीधा सैन्य कार्रवाई (direct military action) होगी। ऐसा सोचना गलत होगा कि रूसी टैंक सऊदी अरब के तेल क्षेत्रों में घुस जाएंगे। इसका तरीका बहुत अलग और सोचा-समझा होगा। रूस इस काम को सैन्य शक्ति से नहीं, बल्कि रणनीतिक प्रभाव (Strategic Influence) से अंजाम दे सकता है। इसके कुछ तरीके हो सकते हैं:

पहला, ओपेक प्लस (OPEC+) गठबंधन को और मजबूत करना। ओपेक यानी मध्य पूर्व के तेल उत्पादक देशों का संगठन और रूस मिलकर ओपेक प्लस बनाते हैं। वे मिलकर तेल उत्पादन में कटौती (Oil Production Cut) करके दुनिया में तेल की कीमत को नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे अमेरिका जैसे देशों को परेशानी होगी।

दूसरा तरीका है सैन्य और प्रौद्योगिकी साझेदारी (Military and Technology Partnership)। रूस आज भी मध्य पूर्व के कई देशों जैसे ईरान, सीरिया और अब सऊदी अरब के साथ अपने संबंध मजबूत करता रहा है। वे उन्हें सस्ते हथियार, एयर डिफेंस सिस्टम जैसे S-400 (air defense system like S-400) और तेल निकालने की तकनीक (oil extraction technology) देकर उनमें अपना प्रभाव बढ़ा सकता है।

तीसरा और सबसे अहम तरीका है पेट्रो डॉलर (Petrodollar) को चुनौती देना। अभी दुनिया में तेल का सारा व्यापार यूएस डॉलर में होता है। रूस, चीन और अब कुछ अरब देश भी इस डॉलर के प्रभुत्व (dollar dominance) को खत्म करना चाहते हैं। अगर वे तेल का व्यापार अपनी स्थानीय मुद्राओं (local currencies) में करने लगे तो अमेरिका की आर्थिक ताकत को बहुत बड़ा झटका लगेगा। इस तरह रूस सीधे कब्जा किए बिना अरब देशों के साथ ऐसी रणनीतिक साझेदारी बना सकता है कि तेल बाजार का रिमोट कंट्रोल मॉस्को में बैठा आदमी ही घुमा पाएगा।


निष्कर्ष: साफ है कि तेल का यह खेल जितना सीधा दिखता है, उतना है नहीं। रूस ने अपने प्राकृतिक संसाधनों, पुराने बुनियादी ढांचे और स्मार्ट कूटनीति (smart diplomacy) के दम पर पश्चिमी प्रतिबंधों को अप्रभावी कर दिया है। भारत जैसे देशों ने अपने राष्ट्रीय हित को सबसे ऊपर रखते हुए इस स्थिति का फायदा उठाया है। आने वाले समय में सीधी जंग का नहीं, बल्कि आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव का होगा, जिसमें रूस मध्य पूर्व के साथ मिलकर एक नया पावर सेंटर बनाने की कोशिश जरूर करेगा। यह ऐसा शतरंज का खेल है जिसमें हर चाल अगले 50 साल की दुनिया की तस्वीर तय करेगी।


FAQs

Q1: रूस इतना सस्ता तेल कैसे निकालता है? A1: रूस के पास विशाल प्राकृतिक गैस और तेल भंडार हैं। इसके सोवियत-युग के बुनियादी ढांचे और सरकारी तेल कंपनियों पर राज्य नियंत्रण के कारण उत्पादन लागत कम रहती है, जिससे रूस सस्ता तेल निकाल पाता है।

Q2: साइबेरिया की अत्यधिक ठंड में तेल निकालना कैसे संभव है? A2: रूस आर्कटिक-ग्रेड स्टील और विशेष इंजीनियरिंग का उपयोग करता है। वे परमाफ्रॉस्ट पर निर्माण के लिए गहराई तक गाड़े गए स्टिल्स का उपयोग करते हैं और तेल को जमने से रोकने के लिए इंसुलेटेड पाइपलाइनों को गर्म करते हैं।

Q3: यूक्रेन युद्ध के बाद रूस का सबसे बड़ा तेल ग्राहक कौन बना? A3: यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद, रूस ने अपना तेल एशिया की ओर मोड़ा। चीन और भारत भारी डिस्काउंट पर रूसी तेल खरीदने वाले उसके सबसे बड़े ग्राहक बन गए हैं।

Q4: भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदने को कैसे सही ठहराया? A4: भारत ने इसे अपने राष्ट्रीय हित में बताया। उसने तर्क दिया कि एक विकासशील देश होने के नाते, 140 करोड़ आबादी के लिए सस्ती ऊर्जा आवश्यक है ताकि नागरिकों पर महंगाई का बोझ कम हो सके।

Q5: रूस वैश्विक तेल बाजार में अपनी शक्ति कैसे बढ़ा सकता है? A5: रूस ओपेक प्लस गठबंधन को मजबूत करके, मध्य पूर्व के देशों के साथ सैन्य और तकनीकी साझेदारी करके, और पेट्रो डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देकर अपनी शक्ति बढ़ा सकता है।

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